अंगद राही
रायबरेली। शिवगढ़ क्षेत्र के पहाड़पुर मजरे कुम्हरावां ग्राम पंचायत में स्थित प्राचीन कालीन कुड़वावीर बाबा की तपोस्थली पर आयोजित कुड़वा वीर बाबा का ऐतिहासिक धनुष यज्ञ मेला संपन्न हुआ। चार दिवसीय मेले के अंतिम दिन बड़े ही धूमधाम से कुड़वा वीर बाबा की तपोस्थली प्रांगण से गत वर्षो की भांति वरिष्ठ समाजसेवी पंडित गिरजा शंकर मिश्रा की अगुवाई में भव्य शोभायात्रा निकाली गई। जिसमें गांव के दिलीप अवस्थी, संकट मोचन मिश्रा, राकेश त्रिवेदी प्रदीप अवस्थी, विश्वास मिश्रा, विनायक मिश्रा, मोनू पारुल ,श्रेयस,सत्यम,करन,कृष्णा,विभू,अनिरुद्ध, राहुल, मुन्ना, संतराम, नीरज अवस्थी, अंकुर बाजपाई, अंशुल बाजपेई, राजेश त्रिवेदी, राम सजीवन, अंशू त्रिवेदी, उत्कर्ष, हर्ष अवस्थी सहित युवाओं एवं किशोरों ने भोलेनाथ, राजा दशरथ,राम दरबार,राजा जनक, भक्त प्रहलाद,हनुमान, कृष्ण-बलराम, परमवीर छत्रपति शिवाजी,विश्वामित्र, गुरु वशिष्ठ,नारद सहित भगवानों के स्वरूप का दिव्य अभिनय करके रथ एवं हाथी, घोड़ों, ऊंटों पर सवार होकर आकर्षक झांकियां निकालकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। शोभायात्रा कुम्हरावां, श्री बरखण्डीनाथ,भैरीखेड़ा,शिवगढ़,दामोदर खेड़ा,भवानीगढ़,मनऊ खेड़ा,पिपरी,पूरे पाण्डेय,ढेकवा होते हुए पुनः कुड़वावीर बाबा की तपोस्थली पर पहुंची। शोभायात्रा में क्षेत्र ही नहीं दूर दराज से आने वाले हजारों श्रद्धालुओं ने शामिल होकर कुड़वा वीर बाबा से मन वांछित आशीर्वाद मांगा। विदित हो कि कुंडवा वीर बाबा का ऐतिहासिक मेला करीब 150 वर्षों से निरंतर होता चला आ रहा है। मान्यता है कि कुड़वा वीर बाबा के आश्रम पर जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से मनोकामना मांगता है उसकी मान्यता अवश्य पूरी होती है। इस मौके पर सेवानिवृत्त शिक्षक फूलचंद त्रिवेदी, प्रधान प्रतिनिधि अनूप मिश्रा, समाजसेवी पवन मिश्रा, जय अवस्थी, देवेंद्र अवस्थी, मोहन हरिवंश उर्फ राजू सहित लोग मौजूद रहे।
अंग्रेज भी बाबा की तपोस्थली हो गए थे नतमस्तक
बताते हैं कि कुड़वा वीर बाबा की प्राचीन कालीन तपोस्थली करीब 250 वर्ष पूर्व खुदाई में मिली थी। करीब 150 वर्षों से कुड़वा वीर बाबा का निरंतर मेला लगता चला रहा है। मान्यता है कि मंदिर के पास से गांव को जाने वाले रास्ते से अंग्रेजों ने पहाड़पुर गांव की पावन तपोभूमि में कई बार दाखिल होने की कोशिश की किंतु मंदिर के पास आते ही घोड़ों के पैर अपने आप ठहर जाते थे जिसके बाद अंग्रेजों के द्वारा काफी कोशिशें किए जाने बावजूद घोड़े एक कदम आगे नहीं बढ़ाते थे। यही कारण है कि इस तपोस्थली पर फिरंगी भी नतमस्तक हो गए थे। जिसकी खुशी में ग्रामीणों द्वारा प्रतिवर्ष धान की फसल कटने पर बाबा की तपोस्थली पर भंडारे एवं उत्सव का आयोजन किया जाता था। तब से लेकर आज तक यह परंपरा निरंतर चली आ रही है। इस परंपरा को जीवंत रखने के लिए समूचा पहाड़पुर गांव समर्पण की भावना से लगा रहता है।