सीएचसी बछरावां में मूलभूत आवश्यकताओं का टोटा
रायबरेली। बछरावां कस्बे में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जिले का एक ऐसा अस्पताल है। जिसमें संभवतः सर्वाधिक मरीज आते हैं । सुबह से रात तक मरीजों का जमावड़ा लगा रहता है। किंतु संसाधनों के अभाव के चलते क्षेत्र की जनता को वह लाभ नहीं मिल पाता जो उसे मिलना चाहिए। कहने को महिला व पुरुष मिलाकर लगभग एक दर्जन डॉक्टरों की नियुक्ति यहां है । परंतु इनमें से कई डॉक्टरों स्कूलों में बच्चों के स्वास्थ्य परीक्षण व आए दिन पोस्टमार्टम में लगने वाली ड्यूटी में फंसे रहते हैं । बात करें यदि पुरुष चिकित्सालय की तो प्रतिदिन चार चिकित्सक ही दिखाई पड़ते हैं । सबसे बड़ी विडंबना है कि जिस विभाग की सबसे अधिक आवश्यकता है उस विभाग का एक भी चिकित्सक नहीं है , हड्डी के डॉक्टर व बाल चिकित्सक की नियुक्ति ना होने के कारण , मरीजो को इधर उधर भटकना पड़ता है। इसी का फायदा उठाकर प्राइवेट चिकित्सक कामयाब हो जाते हैं। यही नहीं प्राइवेट चिकित्सकों के दलाल अक्सर सीएचसी में मौजूद रहते हैं और मरीजों के अभिभावकों के साथ सहानिभूति दिखाते हुए अन्य अस्पतालों तक एडमिट कराने तक ले जाते हैं । आलम यह है कि अल्ट्रासाउंड व सीटी स्कैन की व्यवस्था ना होने के कारण मरीजों को ऐसे डॉक्टरों के पास जाना पड़ता है जो इसके लिए माहिर नहीं है । सिटी स्कैन के लिए लखनऊ या रायबरेली ही एक सहारा है क्षेत्रवासियों द्वारा जनप्रतिनिधियों का ध्यान कई बार इस ओर आकर्षित किया गया है। अपनी निधि के लाखों रुपए विद्यालयों को देने वाले जनप्रतिनिधियों ने कभी यह नहीं सोंचा कि वह अपनी निधि से सिटी स्कैन मशीन व अल्टासाउन्ड मशीनों की व्यवस्था करवा दे। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि पूरे जनपद में कहीं भी सीएचसी भवन में दबाए रखने के लिए गोदान की व्यवस्था की गई ज्ञात हो कि बछरावा सीएचसी से सेहगों , सुदौली सहित कई स्वास्थ्य केंद्रों को आयुर्वेदिक ,होम्योपैथिक , एलोपैथिक दवाएं पहुंचाई जाती है। रायबरेली से उठान के बाद इन्हे कई वार्डों में रखना स्टाफ की मजबूरी बन जाती है। चिकित्सकों के आवासों का आलम यह है कि 25 वर्ष पूर्व अस्पताल में बने आवास पूरी तरह जर्जर चुके हैं। जो रहने लायक नहीं बचे हैं इन आवासों में तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी अपनी जान जोखिम में डाल कर रह रहे हैं। डॉक्टर के पास इतना भी स्थान नहीं होता है कि वह कहीं दिन में व रात में आराम कर सके। अस्पताल के बाद लखनऊ भाग जाना चिकित्सकों की मजबूरी होती है कई चिकित्सकों ने बताया कि वह अपना आवास बछरावां में अपना बनाना चाहते हैं परन्तु परिवार को लेकर कहां रहे यह एक बड़ा यक्ष प्रश्न है। विदित हो कि एक महिला चिकित्सक जो पूरी तरह अस्पताल में ही रहती हैं। अपना वैकल्पिक आवास एक फार्मेसिस्ट के कमरे में बना रखा है। सबको स्वास्थ्य एवं विकास का नारा देनेे वाली प्रदेश सरकार के जनप्रतिनिधियों सांसद का ध्यान इस ओर नहीं दिया जाना , इस बात का संकेत करता है कि सभी दलों के नेता एक जैसे हैं जनता की परेशानियों से उनका कोई लेना देना नहीं है।
बछरावां से अमित अवस्थी की रिपोर्ट