नईदिल्ली - पूर्व विधायक कृष्णानंद राय की 2005 में गोलोयों से भूनकर हुई हत्या के मामले में आज सीबीआई अदालत ने फैसला सुनाते हुए मामले में सभी पांच आरोपियों को बरी कर दिया है। कृष्णानंद राय की हत्या के मामले में संजीव माहेश्वरी, एजाजुल हक़, मुख्तार अंसारी, अफ़ज़ाल अंसारी, राकेश पांडेय, रामु मल्लाह, मंसूर अंसारी और मुन्ना बजरंगी को आरोपी बनाया गया था जिसमे से मुन्ना बजरंगी की इसी वर्ष जेल में जेल हत्या कर दी गयी थी।
विदित हो कि पूर्व विधायक राय की 2005 में हत्या कर दी गई थी, वह मौजूदा विधायक थे, इस घटना ने उस वक्त बड़ा राजनीतिक तूफान ला दिया था। जिसका आरोप बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी सहित अन्य लोगों पर लगा। हालांकि कोर्ट ने मुख्तार सहित अन्य सभी को बरी कर दिया है, मुख्तार वर्तमान में बसपा से विधायक और उनके भाई अफ़जाल अंसारी बसपा से सांसद हैं। विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के विरोध में और दोषियों को सजा देने की मांग करते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता और मौजूदा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह चंडौली में धरने पर बैठ गए थे, जिसके बाद इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया गया था. ऐसे में करीब 13 साल तक कोर्ट में मामले की सुनवाई के बाद मुख्तार अंसारी को सबूतों की कमी के आधार पर बरी कर दिया गया है।
कौन थे कृष्णानद राय
पूर्वांचल की सियासत व दबंगई आज भी लोगों को अपराधों के वे किस्से याद दिलाती है जनकों सोंचकर ही रूह काँप जाती है। इसी दहशत को बरकरार रखने के लिए कई कई बार खूनी जंग हो चुकी है। ऐसी ही एक जंग का खूनी अंत हुआ था नवंबर 2005 में जब बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या ने यूपी की सियासत को हिलाकर रख दिया था।
इस हत्याकांड के बाद अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह और कल्याण सिंह जैसे दिग्गज नेताओं ने सीबीआई जांच की मांग की थी।
इसके अलावा कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय ने जो एफआईआर दर्ज कराई थी, उसमें मुख्तार अंसारी, अफजल अंसारी, मुन्ना बजरंगी, अताउर रहमान, संजीव महेश्वरी, फिरदौस, राकेश पाण्डेय आदि का नाम शामिल थे। हालांकि मामले में बुधवार को दिल्ली की सीबीआई कोर्ट ने सबूतों के आभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया.
पुरानी है मुख़्तार व कृष्णानंद की रार की कहानी
पूर्वांचल में अपराध की दुनिया के बेताज बादशाह कहे जाने वाले मुख़्तार अंसारी 90 के दशक में सियासत की राह पकड़ी थी और उन्होंने 1996 में विधानसभा चुनाव लड़ा और राजनीति पारी की शुरुआत की, सियासी ताकत के साथ आने से मुख़्तार का कद और बढ़ा, साथ ही दुश्मनों की संख्या भी. इनमे से एक प्रमुख नाम था ब्रजेश सिंह का. दोनों की दुश्मनी की भेंट कई लोग चढ़े. गैंगवार में काफी खून बहा, स्थानीय सूत्रों की माने तो ब्रजेश सिंह मुख़्तार के सामने कमजोर पड़ने लगा तो उसने सियासी मदद की तलाश शुरू की ऐसे में उसे यह मदद मिली कृष्णानंद राय से. कहते हैं सियासत में अपराध करने वाला और करवाने वाला अलग-अलग. जिस वक्त मुख़्तार की तूती बोल रही थी, उसी वक्त उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले की मोहम्मदाबाद सीट से 2002 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की टिकट पर कृष्णानंद राय ने चुनाव जीता. ग्रामीण पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाले कृष्णानंद राय से अंसारी की अदावत बढ़ने लगी और उनका कद बढ़ता देख अंसारी को ये बात हजम नहीं हुई. धीरे-धीरे दोनों में तकरार बढ़ने लगी और क्षेत्र में बालू गिट्टी के निकलने वाले ठेके जंग का कारण बनने लगे.
मुख़्तार और कृष्णानंद दोनों ही सियासत में थे और संवैधानिक पद पर आसीन थे. ऐसे में खुद अपराध करना उचित नहीं था. लिहाजा कृष्णानंद ने ब्रजेश सिंह को शरण दी तो मुख़्तार ने मुन्ना बजरंगी को खड़ा किया. पूर्वांचल में किसी बड़ी घटना का अंदेशा तो सभी को था, लेकिन वह कृष्णानंद राय की हत्या से जुड़ी होगी किसी ने नहीं सोचा था. नवंबर 2005 में पूर्वांचल के दो बाहुबलियों की जंग की भेंट चढ़े कृष्णानंद राय और उनके छह साथी. एक समारोह से लौटते हुए कई हथियार बंद लोगों ने कृष्णानंद राय के काफिले पर हमला किया. उनके पास एके-47 और कई ऑटोमैटिक हथियार थे, जिससे राय और उनके कुल छह साथियों की हत्या कर दी गई, 2002 में हुए जानलेवा हमले में बाल-बाल बचने के बाद ही मुख़्तार ने बदले की योजना बना ली थी. इस बार मुख़्तार सामने नहीं आना चाहते थे. ब्रजेश सिंह अंडरग्राउंड थे और उनके मारे जाने की अफवाह भी थी. लेकिन मुख्तार को भनक थी कि ब्रजेश को कृष्णानंद राय का संरक्षण प्राप्त है. लिहाजा मुख़्तार ने यह जिम्मेदारी मुन्ना बजरंगी को सौंपी थी इस हत्याकांड में सभी आरोपियाें के बरी होने के बाद सीबीआई की जांच पर सवाल उठ रहे हैं. इतने बड़े हत्याकांड में सीबीआई एक भी सबूत पेश नहीं कर सकी, सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया. फैसले के बाद अब सवाल यह उठ रहा है कि आखिर इस हत्या के पीछे कौन था?