अभी इतने वर्षों तक निरंतर काम करता रहेगा चद्रयान 2 का आर्बिटर
न्यूजडेस्क - देश के सबसे बड़े अभियान चंद्रयान2 का भले ही मिशन 100 फीसदी कामयाब न होकर 95 फीसदी ही कामयाब हो पाया हो मगर इतनी कामयाबी भी भारत को आगामी कई वर्षों तक निरंतर लाभ पहुँचाती रहेगी। इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन का भले ही चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम से संपर्क टूट गया हो लेकिन वैज्ञानिकों ने विक्रम से संपर्क साधने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है, लैंडर विक्रम से संपर्क होगा या नहीं ये अभी कहना मुश्किल है, लेकिन इसरो के चीफ डॉ. के. सिवन पहले ही कह चुके हैं कि हमने 95 फीसदी इस मिशन की कामयाबी हासिल कर ली है, क्योंकि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर चांद पर 7 साल तक अपना काम करता रहेगा। दरअसल, चंद्रयान-2को चांद पर भेजा गया था उस समय ऑर्बिटरका वजन करीब 1,697 किलो का था, लेकिन जब चांद पर पहुंचा तो ऑर्बिटर का ईंधन करीब 500 किलो रह गया, जो 7 वर्ष से ज्यादा समय तक काम कर सकता है, लेकिन ये अतंरिक्ष के वातावरण पर निर्भर करेगा कि वह कितने साल तक काम करता रहेगा, क्योंकि ऑर्बिटर को अंतरिक्ष में पिंडों, उल्कापिंड़ों, सैटेलाइटों और तूफानों से बचने के लिए अपना स्थान बदलना पड़ेगा, ऐसे में एक जगह से दूसरी जगह जाने में ईंधन खर्च होगा, जिससे उसका जीवनकाल कम होगा। 1 सितंबर तक चांद के चारों ओर ऑर्बिटर पांच बार अपनी कक्षाओं में बदलाव कर चुका है, पृथ्वी हो या चांद हर बार उसके जगह बदलने पर ईंधन की खपत हो रही है, बताया जा रहा है कि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर फिलहाल चांद की कक्षा के 100 किमी दायरे में चक्कर लगा रहा है, इससे पहले ऑर्बिटर पृथ्वी के चारों तरफ 24 जुलाई से 6 अगस्त तक 14 दिनों में पांच चक्कर लगा चुका है. ऑर्बिटर को चांद की कक्षाओं में जाने के लिए 14 अगस्त को ट्रांस लूनर ऑर्बिट में डाला गया था. यहां से उसे लंबी यात्रा तय करनी थी, इसलिए 20 अगस्त को उसे चांद की कक्षा में डाला गया। 22 जुलाई को लॉन्च के समय ऑर्बिटर का कुल वजन 2,379 किलो था, इसमें ऑर्बिटर का 1697 किलो ईंधन का वजन भी शामिल था, यानि बगैर ईंधन के ऑर्बिटर का वजन सिर्फ 682 किलो है. लॉन्च होने के बाद GSLV-MK 3 रॉकेट ने ऑर्बिटर को पृथ्वी से ऊपर ऊपर 170x39120 किमी की अंडाकार कक्षा में पहुंचा दिया था, इसके बाद ऑर्बिटर ने खुद के ईंधन पर अपनी यात्रा तय की, ऑर्बिटर के पास कई पेलोड्स हैं जो इसरो को जानकारी देंगे। चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर में ऑप्टिकल हाई रिजोल्यूशन कैमरा लगा हुआ है, जो चांद की सतह पर 1 फीट की ऊंचाई तक अच्छी तस्वीर ले सकता है, इसका पहला काम लैंडिग वाली जगह की डिजिटल एलिवेशन मॉडल (DEM) को जेनरेट करना है. इसी ने विक्रम लैंडर की तस्वीर ली, जो हाल ही में इसरो ने जारी की थी। यह पेलोड चांद पर एक्स-रे फ्लूरोसेंस स्पेक्ट्रा के बारे में जानकारी देगा. यानी चांद की सतह पर कैल्सियम, सिलिकॉन, एल्युमीनियम, मैग्नेशियम, टाइटैनियम, आयरन और सोडियम जैसे धातुओं की जानकारी देगा। इसका इस्तेमाल चंद्रयान-1 के मिशन में भी किया गया था. यह चांद की सतह का हाई रिजोल्यूशन तस्वीर ले सकता है, TMC-2 चांद की कक्षा से 100 किमी दूरी और उसकी सतह पर 5 मीटर से लेकर 20 किमी तक के एरिया की तस्वीर लेने में सक्षम है। चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर में लगा एक्सएसएम सूर्य और उसके कोरोना से निकलने वाले X-RAY के जरिए सूर्य के रेडिएशन की तीव्रता नापेगा, साथ ही ऑर्बिटर की ऊर्जा बनाए रखने में मदद करेगा। ये पेलोड चांद पर लूनर आयोनोस्फेयर की बारे में जानकारी जुटाएगा, इसके अलावा पृथ्वी के डीप स्टेशन नेटवर्क रिसीवर से सिग्नल रिसीव करने का कार्य करेगा। IIRS का मुख्य काम है कि चांद की ग्लोबल मिनिरलोजिकल और वोलटाइल मैपिंग करना, इसके अलावा पानी या पानी जैसे दिखने वाले पदार्थ का कम्प्लीट कैरेक्टराइजेशन करना।
फिलहाल अभी तक के मिशन से भी भारत ने अंतरिक्ष की दुनियसा में एक बड़ी सफलता अर्जित की है, और इसरो के वैज्ञानिक अब भी लैंडर से सम्पर्क स्थापित करने के लिए दिन रात एक करके जुटे हुए हैं।