सीएम के मीडिया एडवाइजर के बारे में भड़ास4मीडिया एडिटर ने लिखी यह बड़ी बात
न्यूजडेस्क - मीडिया जगत में शायद ही कोई ऐसा चेहरा हो जो भड़ास4मीडिया या उसके एडिटर यशवन्त सिंह के नाम से परिचित न हो , उसका रीजन यह नहीं कि सिर्फ खबरें प्रकाशित करने से उनकी पहचान हो, बल्कि यह पहचान मिली है उनकी बेबाक शैली, तीखी लेखनी व भड़ास4मीडिया की मेहनत से, यशवन्त सिंह भड़ास 4 मीडिया के एडिटर होने के साथ साथ एक बेबाक व निष्पक्ष इंसान भी हैं, एक बार अगर किसी की यशंवत सिंह से मुलाकात हो जाए तो वह आजीवन अविस्मरणीय हो जाती है।
इस बार यशवन्त सिंह ने ऐसी मिशाल पेश की है जो कि आज के समय मे कोई करने को तैयार न हो, एक छोटे से सन्देश से जो कि सिर्फ सोशल मीडिया पर मिला हो, उसपर पूरी गम्भीरता दिखाते हुए यशवन्त सिंह ने न सिर्फ खुद अपने सूत्रों से मामले की पड़ताल कराकर पीड़िता की मदद की बल्कि मामले में कार्यवाही में हो रहे विलम्ब पर मामला सीएम कार्यालय तक पहुंचा दिया, एक रेप पीड़िता जिसकी मदद कोई न कर रहा हो उसके बारे में पूरी पड़ताल व कार्यवाही कराने तक का जो कार्य यशवन्त सिंह ने किया है, उससे उनकी प्रशंसा हो रही है, सोशल मीडिया पर भी लोग इस कार्य की सराहना कर रहे हैं।
खुद यशवन्त सिंह ने पूरे मामले को सोशल मीडिया पर बयां किया है,
आगे पढ़ें यशवन्त सिंह ने पूरे मामले मे विस्तार से क्या लिखा....
भड़ास4मीडिया एडिटर यशवन्त सिंह की फेसबुक वाल से
इसे कहते हैं 'मृत्युंजय' होना!
जिला जौनपुर के एक गांव की बेहद गरीब लड़की, दलित परिवार की बेटी, भूमिहीन की बेटी... रोते बिलखते उसका कल फोन आया था... उसके प्रेमी ने शादी के लिए अपनी दीदी को उसे दिखाने के वास्ते बुलाया... पर उसने महापाप कर दिया... उसने धोखा दिया... उसने जबरदस्ती कर दी.. उसने लड़की से बलात्कार किया...
लड़की की इतनी हिम्मत-हैसियत नहीं कि वह थाने जाकर मुकदमा दर्ज करा सके... उसने इंटरनेट पर नंबर ढूंढा... पता नहीं कैसे मेरा नंबर उसके हाथ लग गया... उसे टालना चाहा.... पर उसकी सिसकन, रुदन, आर्तनाद ने अलग न होने दिया... उसके लिए कुछ करना चाहा... उसने सुसाइड की बात कही... उसे ज़िंदा रहने देने के लिए उसके साथ खड़े होने का दिल चाहा..
ये सब बातें कल लिख चुका हूं... फिर इसलिए संक्षेप में लिख रहा कि जो न पढ़े हों, वो थोड़ा बैकग्राउंड जान लें ताकि आगे की स्थिति को अच्छे से समझ सकें...
अमर उजाला, जौनपुर के ब्यूरो चीफ विनोद तिवारी को फोन किया.. पूरा माजरा बताया.... उनने फौरन खबर बनाकर बनारस मुख्यालय भेजा... एक सुनार के यहां करोड़ों की डकैती के खुलासे के लिए जौनपुर कैंप किए बनारस रेंज के आईजी से विनोद तिवारी ने इस प्रकरण पर बात कर पीड़ित लड़की को न्याय दिलाने और रेपिस्ट को अरेस्ट कराने का अनुरोध किया. आईजी साहब ने लड़की से कंप्लेन लिखवाने को कहा.
विनोद जी ने मुझे बताया कि आईजी साहब ने कंप्लेन लिखवाने के लिए कहा है. लड़की कंप्लेन लिख कर दे तो पुलिस एक्टिव हो जाएगी..
मैं सोचने लगा.॥यह पूरा सिस्टम इतना संवेदनहीन, इतना औपचारिक, इतना ठस, इतना एकतरफा, इतना कागजी, इतना बासी, इतना पुराना, इतना जनविरोधी क्यों है...
मैंने लड़की से बातचीत के दो आडियो भेज रखे थे... दलित लड़की और उसके भूमिहीन मां पिता की इतनी हिम्मत नहीं कि वे थाने जाकर कंप्लेन लिखा सकें... ऐसे में क्या सिस्टम खुद संज्ञान लेकर एक्टिव नहीं हो सकता? मुन्ना भाई एमबीबीएस फिल्म का वो सवाल-सीन दिमाग में घूम गया जिसमें मुन्ना भाई मेडिकल की पढ़ाई के वक्त अपने प्रिंसिपल से पूछता है कि जब कोई घायल व्यक्ति अस्पताल में आएगा तो पहले उसका इलाज शुरू होगा या उसका नाम पता लिखकर पुलिस केस की प्रक्रिया शुरू होने के बाद ही उस पर डाक्टर हाथ लगाएगा..
कुछ इसी टाइप सवाल था...
आशय ये कि अस्पताल के द्वार घायल आया है तो फौरन इलाज करो.. पर्चा लिखाने और पुलिस में रिपोर्ट लिखाने का इंतजार कर उसे मरने के लिए न छोड़ो...
अगर सबसे हाशिए के किसी व्यक्ति पर अत्याचार की सूचना मिल गई है तो फौरन उसे न्याय दिलाने के लिए सक्रिय हो जाओ, न कि उसके द्वारा कंप्लेन लिखे जाने और थाने में सबमिट किए जाने का इंतजार करो....
मुझे कोफ्त होने लगी...
आखिर ये पूरा फौज फाटा लाव लश्कर सत्ता सिस्टम पुलिस प्रशासन मीडिया न्यायपालिका थाना कचहरी डीएम एसएसपी मंत्री संतरी है क्यों? किसके लिए निर्मित है... इसका मकसद क्या है... क्या यह सब कुछ सबसे कमजोर आदमी की रक्षा के लिए, सबसे हाशिए के आदमी को न्याय दिलाने के लिए, दबे कुचलों को मुख्यधारा में लाने के लिए नहीं है? अगर है तो फिर सब इतने आत्मकेंद्रित क्यों हैं... सब अपने अपने खोल में बैठे आत्ममुग्ध से क्यों हैं...
मुझे गुस्सा आने लगा... खुद के पत्रकार होने पर, खुद के एक संवेदनशील इंसान होने पर शर्म आने लगी.. कुछ न कर पाने की पीड़ा परेशान करने लगी...
ऐसे में याद आए Mrityunjay जी. यूपी के सीएम के मीडिया एडवाइजर. दशक भर से ज्यादा वक्त तक ये अमर उजाला जैसे अखबारों में संपादक रहे. तबसे परिचय है. उन्हें कल रात में फोन लगाया और सीधा सा सवाल पूछा कि क्या ये सत्ता सिस्टम समाज के सबसे हाशिए के व्यक्ति को न्याय दिलाने के लिए किसी लिखित कंप्लेन का इंतजार करता हुआ सोता रहेगा या स्वत:संज्ञान लेकर खुद सत्ता के साहेब लोग पीड़ित के दरवाजे पहुंचेंगे और न्याय दिलाने की पहल करेंगे?
मृत्युंजय भाई फौरन फोन उठाते हैं. उन्हें पता होता है कि अपन उनसे कभी दलाली बट्टा की बात न करेंगे. उनसे किसी की ट्रांसफर पोस्टिंग की सिफारिश न करेंगे. मृत्युंजय जी का खुद का स्वभाव भी ऐसा नहीं है... वह एकदम सपाट, बेबाक और सहज हैं... सुनेंगे सबकी... पर ऐसा कुछ न करेंगे जो उनके स्वभाव के प्रतिकूल हो... नियम कानून के हिसाब से जो कुछ सही होगा, वही करेंगे.... और, ऐसा ही सबको करने की सलाह भी देंगे... मुझे ऐसे आदमी सही लगते हैं... ऐसा आदमी संवेदनशील होता है.. ऐसा आदमी दलालों-चोट्टों से घिरा नहीं रहता... ऐसा आदमी वक्त निकाल लेता है उन पीड़ितों के लिए जिनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं...
मृत्युंजय भाई ने मेरा सवाल सुनकर सीधा जवाब दिया, एक लाइन में- यशवंत जी, बताइए मामला क्या है. सत्ता सिस्टम बिलकुल पीड़ित के दरवाजे पर पहुंचेगा...
मैंने उनसे अनुरोध किया कि कलम उठाएं और नोट करें...
उनने कहा कि एक मिनट दीजिए... भोजन पर बैठा हूं... अब आगे एक कौर न खाउंगा... हाथ धोने भर का वक्त दीजिए... आपको कालबैक करता हूं...
एक मिनट भी न बीता होगा, मृत्युंजय भाई का फोन आया... उनने नोट करना शुरू किया... जिला जौनपुर थाना सराख्वाजा... गांव, लड़की का नाम, उसके साथ हुआ घटनाक्रम...
उनने कहा- अब आप फोन रखिए... आपका काम खत्म. अब मेरा काम शुरू.... उनका मेरा सा आशय ये था कि राज्य सरकार के संज्ञान में आपने प्रकरण ला दिया... राज्य सरकार का एक हिस्सा होने के नाते अब आश्वस्त करता हूं कि राज्य सरकार अब अपना काम शुरू करता है, पीड़ित के द्वार पहुंचकर उसे न्याय दिलाने के लिए...
पांच मिनट भी नहीं बीते होंगे... खुद डीजीपी से लेकर आईजी बनारस, एसएसपी जौनपुर, थानेदार सरायख्वाजा एक के बाद एक धड़ाधड़ एक्टिव होने लगे... लखनऊ से लगातार आ रहे फोन काल्स और निर्देशों से जौनपुर का अलसाया पुलिस महकमा एलर्ट मोड में आ गया...
रात ग्यारह बजे आईजी का फोन मेरे पास आया... उनके साथ दूसरी तरफ कॉल पर सराख्वाजा के थानेदार थे... पूरा प्रकरण उनने मुझसे दुबारा जाना समझा और पुलिस फोर्स को पीड़िता के दरवाजे पहुंचने का निर्दश जारी किया.. रात बारह बजे लड़की के घर थानेदार समेत पुलिस फोर्स पहुंच चुकी थी.
लड़की का फोन मेरे पास आया... थैंक्यू भइया... पुलिस के लोग आ गए हैं... मुझे अब मुकदमा नहीं लिखाना है... मुझे उस लड़के से शादी करनी है...
मैंने दस मिनट उसे समझाया... बेटा, भय बिन होई न प्रीत... पहले मुकदमा लिखाओ... लड़का अरेस्ट होगा... फिर तुम उससे शादी के लिए कहना.. न करे तो उसे जेल भिजवाओ...
उसे समझ में आ गया.... गेट पर इंतजार कर रहे थानेदार के आगे जाकर भूमिहीन दलित मां पिता और बेटी ने पूरा वाकया बयान किया... पुलिस विनम्र भाव से सिर झुकाकर सब कुछ नोट करने के बाद बिटिया को आश्वस्त किया कि हम सब आपके साथ हैं, आपको न्याय मिलेगा.
लड़की का अभी कुछ देर पहले फोन आया. कहने लगी, भइया थाने जा रही हूं, थानाध्यक्ष ने रात कहा था कि आप कल कभी भी थाने आ जाइएगा.
मैंने कहा- थाने जाे में डर तो नहीं लग रहा?
उसका जवाब था- अब नहीं. रात में उन लोगों ने बहुत अच्छे से बात किया. मुझे पहले डर लगता था पुलिस से. लेकिन कल उनसे बात कर, उनका व्यवहार देखकर लगा कि ये अच्छे लोग हैं. मुझे थाने जाने में कोई डर नहीं अब.
मैंने कहा- आप भले ही गांव की सबसे गरीब घर की हो, आप भले ही एक भूमिहीन दलित परिवार से हो... आपके पिताजी भले ही एक लेबर का काम करके आप सबका गुजारा करते हैं... आपका भले ही इस सत्ता सिस्टम समाज में कोई पैरोकार नहीं... बावजूद इसके, पूरी राज्य सरकार आपके साथ खड़ी है... इसलिए क्योंकि लखनऊ में स्थित राज्य सरकार के हेडक्वार्टर में एक ऐसा शख्स भी बैठा है जिसके लिए किसी पीड़ित को न्याय दिलाना उसकी निजी संवेदना और सरोकार का हिस्सा है.
ऐसे दौर में जब खाए अघाए धूर्त नौकरशाह, मदमस्त सत्ताएं, करप्ट पुलिस के आगे पीड़ित अपनी बात कहते कहते थक कर चुप हो जाते हैं, हार कर घर बैठ जाते हैं, एक अकेले मृत्युंजय कुमार का होना ये आश्वस्त करता है कि चंद अच्छे लोग हर कहीं होते हैं जिनके दम पर पूरा सिस्टम ये भरोसा देता रहता है कि सब कुछ बिगड़ा नहीं. कुछ लोग हैं जो लोकतंत्र को, न्याय को, सरोकार को जिंदा रखना चाहते हैं... इस भावना को अपने रुटीन जीवन में जीते हैं...
बहुत से चपल चालाक किस्म के धूर्तों को ये लगेगा कि यशवंत ने मृत्युंजय की कुछ ज्यादा ही तारीफ कर दी... पर कल रात में अपन और मृत्युंजय भाई ने एक भूमिहीन दलित लड़की की पीड़ा का स्वत: संज्ञान लेकर जिस किस्म का आपरेशन चलाया, जिस तरह से सत्ता सिस्टम फौज फाटे को समाज के सबसे आखिरी पायदान के आदमी के दरवाजे पर ला खड़ा किया, वह अभूतपूर्व था.
वो लड़की गर्व से भर गई.