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अपने बच्चों पर रखे नज़र, ऑनलाइन गेम ले सकते है जान

टेक प्लस : एक समय वह भी था जब बच्चों को घर से बाहर खेलने जाने के लिए मना किया जाता था। दिनभर घर से बाहर रहकर खेलने के लिए उन्हें डांट भी पड़ती थी लेकिन अब समय बदल गया है। अब हालात ऐसे हो गए हैं कि बच्चे खेलने के लिए घर से बाहर ही नहीं निकल रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण ऑनलाइन वीडियो गेम और स्मार्टफोन है। वीडियो गेम खेलने वाले स्मार्टफोन सात-आठ हजार रुपये तक में आसानी से मिल रहे हैं। वहीं गूगल प्ले-स्टोर पर मुफ्त मोबाइल गेम भी मिल जाते हैं। 

दरअसल, ऑनलाइन वीडियो गेमिंग का बाजार बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है इसी के साथ बढ़ रहा है इसका दुष्परिणाम। कई वीडियो गेम्स बच्चों के लिए बेहद ही खतरनाक साबित हो रहे हैं। ब्लू व्हेल जैसे गेम्स की वजह से कई मौतें भी हो चुकी हैं। आइए जानते हैं कुछ वीडियो गेम्स के बारे में जो बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं, उन्हें हिंसक बना रहे हैं और यहां तक की जान देने के लिए भी उकसा रहे हैं।

1. ब्लू व्हेल

ब्लू व्हेल गेम का नाम तो आपने सुना ही होगा। यह गेम साल 2017-18 में काफी लोकप्रिय हुआ था। इसमें टास्क पूरा करने के लिए कई बच्चों ने आत्महत्या तक की है। साल 2017 में इस गेम की वजह से रूस में 130 से अधिक बच्चों की मौत हुई थी, वहीं भारत में करीब 100 बच्चों ने मौत को गले लगाया था। बाद में इस गेम को बनाने वाले फिलिप बुदेकिन (Phillip Budeikin) को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था।

पुलिस हिरासत में फिलिप ने बताया कि उसने यह गेम उन लोगों के लिए बनाया जो लोग जीना नहीं चाहते। खास बात यह थी कि यह गेम गूगल प्ले-स्टोर या एपल के एप स्टोर पर नहीं था, बल्कि इसे इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिंक के जरिए डाउनलोड कराया जा रहा था। बाद में इंस्टाग्राम ने भी इस गेम को अपने प्लेटफॉर्म पर बंद कर दिया था। हालांकि पिछले साल से इस गेम को लेकर कोई रिपोर्ट सामने नहीं आई है, लेकिन यह गेम किसी अन्य नाम से अभी मौजूद है। गूगल पर blue whale game other names भी सर्च किया जा रहा है।

ब्लू व्हेल गेम में दिए जाते थे ऐसे टास्क

1. वेकअप एट 4.30 मॉर्निंग- सुबह 4 बजे उठकर हॉरर फिल्में देखने और उसकी फोटो क्यूरेटर को भेजने को कहा जाता था।
2. हाथ पर ब्लेड से ब्लू व्हेल बनाएं- ब्लेड से हाथ पर फोटो उकेरने के बाद उसे क्यूरेटर को भेजने को कहा जाता था।
3. नसें काटना- गेम में एक चैलेंज हाथ की नसों को काटकर उसकी फोटो भेजने वाला भी था।
4. छत से कूदना- क्यूरेटर यूजर्स को सुबह छत से छलांग लगाने को भी कहता था।
5. चाकू से काटना- इस गेम में एक टास्क व्हेल बनने के लिए तैयार होना था। इसमें फेल होने पर हाथ पर चाकू के कई वार करने होते थे और पास होने पर पैर पर ब्लेड से YES उकेरना होता था।
6. म्यूजिक सुनना- क्यूरेटर यूजर्स को म्यूजिक भेजता है जो सुसाइड करने और खुद को नुकसान पहुंचाने के लिए उकसाने वाले होते थे।
7. सुसाइड- गेम के 50वें और अंतिम टास्क में सुसाइड करने का टास्क दिया जाता था।

2. पास आउट चैलेंज

पास आउट चैलेंज गेम चोकिंग गेम (Choking Game) के नाम से भी जाना जाता है। यह गेम बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ था। इसमें दो-तीन बच्चे शामिल होते थे और एक-दूसरे का गला घोंटते थे। ऐसे में ऑक्सीजन ना मिलने की स्थिति में उनकी मौत हो रही थी। कई बार बच्चे बहोश होकर गिर भी जाते थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अमेरिका में हर साल इस गेम की वजह से करीब 1,000 मौतें होती हैं। इसमें शामिल बच्चों की पहचान उनकी हरकतों से की जा सकती है। जैसे, यदि कोई बच्चा अपनी गर्दन ढंककर रह रहा है तो संभव है कि वह इस गेम को खेल रहा है। इसके अलावा यदि बच्चों की गर्दन पर किसी प्रकार का कोई निशान नजर आए तो आपको सतर्क हो जाने और उस पर नजर रखने की जरूरत है।

3. PUBG मोबाइल

प्लेयर्स अननोन बैटल ग्राउंड (Players Unknown Battle Ground) के नाम से मशहूर इस पबजी गेम को भारत में बंद करने की मांग चल रही है। यह गेम बहुत ही कम समय में लोकप्रिय हुआ है। गुजरात में इस गेम पर एक महीने के लिए प्रतिबंध भी लगा था और इस दौरान गेम खेलने के आरोप में 16 लोगों की गिरफ्तारी भी हुई थी। डॉक्टर्स के मुताबिक पबजी गेम युवाओं को मानसिक रूप से बीमार बना रहा है और साथ ही इस गेम को खेलने के बाद बच्चों में हिंसक प्रवृति भी पनप रही है। इसी साल मई में मध्यप्रदेश में पबजी गेम में हार जाने के बाद एक 16 साल के बच्चे की मौत हार्ट अटैक से हो गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि वह पिछले 6 घंटे से पबजी खेल रहा था।

4. साल्ट एंड आइस चैलेज

यह गेम भी ब्लू व्हेल की तरह खुद को नुकसान पहुंचाने वाला है। इस गेम में बच्चों को टास्क दिया जाता है कि वह शरीर के किसी हिस्से पर नमक रखें और उसके ऊपर से बर्फ रखें। ऐसे में नमक के कारण बर्फ तेजी से पिघल जाता है और वह जगह जल जाती है। इस गेम के कारण कई बच्चों के हाथ जल गए थे और कईयों को जलन की समस्या हो गई थी।

डलमऊ घाट भी होगा अब हाईटेक, लगेगी ये चीज

न्यूज़ डेस्क डेड

डलमऊ रायबरेली
भारत सरकार की महत्वाकांक्षी योजना नमामि गंगे योजना के अंतर्गत डलमऊ के गंगा घाट वाईफाई से लैस होंगे इसके लिए नगर पंचायत अध्यक्ष बृजेश गौड़ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजा है प्रधानमंत्री को संबोधित पत्र में नगर पंचायत अध्यक्ष ने पीएम को अवगत कराया है कि नगर पंचायत  डलमऊ गंगा के पावन तट पर बसा हुआ है यहां पर प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु एवं विभिन्न जनपदों से पर्यटक गंगा स्नान करने हेतु आते डलमऊ गंगा तट पर भारत सरकार की  नमामि गंगे योजना के अंतर्गत 5 घाटों का नव निर्माण एवं सुंदरीकरण का कार्य कराया गया जिसे देखने के लिए जनपद ही नहीं बल्कि जनपद अन्य जनपदों के पर्यटक सरकार द्वारा किए जा रहे गंगा स्वच्छता के प्रयासों से बदल रहे घाटों की सूरत को देखने के लिए आते हैं किंतु आने वाले पर्यटकों के लिए भारत सरकार द्वारा संचालित डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत पर्यटन स्थलों पर वाईफाई की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है जिस से आने वाले श्रद्धालुओं को परेशानी होती है साथ ही अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री को संबोधित पत्र में डलमऊ नगर पंचायत में ओपन जिम बनवाए जाने का भी अनुरोध किया अध्यक्ष ने अवगत कराया है कि नगर क्षेत्र के युवाओं को अपनी सेहत और स्वास्थ्य के लिए दैनिक व्यायाम के लिए सड़कों का सहारा लेना पड़ता है जिससे आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती यदि नगर पंचायत में ओपन जिम बन जाए तो युवाओं को काफी सुविधा होगी।
अनुज मौर्य/विमल मौर्य रिपोर्ट

डलमऊ घाट भी होगा अब हाईटेक, लगेगी ये चीज

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डलमऊ रायबरेली
भारत सरकार की महत्वाकांक्षी योजना नमामि गंगे योजना के अंतर्गत डलमऊ के गंगा घाट वाईफाई से लैस होंगे इसके लिए नगर पंचायत अध्यक्ष बृजेश गौड़ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजा है प्रधानमंत्री को संबोधित पत्र में नगर पंचायत अध्यक्ष ने पीएम को अवगत कराया है कि नगर पंचायत  डलमऊ गंगा के पावन तट पर बसा हुआ है यहां पर प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु एवं विभिन्न जनपदों से पर्यटक गंगा स्नान करने हेतु आते डलमऊ गंगा तट पर भारत सरकार की  नमामि गंगे योजना के अंतर्गत 5 घाटों का नव निर्माण एवं सुंदरीकरण का कार्य कराया गया जिसे देखने के लिए जनपद ही नहीं बल्कि जनपद अन्य जनपदों के पर्यटक सरकार द्वारा किए जा रहे गंगा स्वच्छता के प्रयासों से बदल रहे घाटों की सूरत को देखने के लिए आते हैं किंतु आने वाले पर्यटकों के लिए भारत सरकार द्वारा संचालित डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत पर्यटन स्थलों पर वाईफाई की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है जिस से आने वाले श्रद्धालुओं को परेशानी होती है साथ ही अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री को संबोधित पत्र में डलमऊ नगर पंचायत में ओपन जिम बनवाए जाने का भी अनुरोध किया अध्यक्ष ने अवगत कराया है कि नगर क्षेत्र के युवाओं को अपनी सेहत और स्वास्थ्य के लिए दैनिक व्यायाम के लिए सड़कों का सहारा लेना पड़ता है जिससे आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती यदि नगर पंचायत में ओपन जिम बन जाए तो युवाओं को काफी सुविधा होगी।
अनुज मौर्य/विमल मौर्य रिपोर्ट

जानिए ग्रुप कैप्टन हरकीरत सिंह की कहानी , जो पहले राफेल स्क्वाड्रन की कमान संभालेंगे

नई दिल्ली : फ्रांस ने मंगलवार को मेरिनेक एयरबेस पर भारत को पहला राफेल फाइटर जेट सौंपा. वैसे ही सोशल मीडिया पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भारतीय वायु सेना के वरिष्ठ अधिकारियों की तस्वीरें छा गयी थीं.

ग्रुप कैप्टन हरकीरत सिंह अधिकारियों के बीच मौजूद थे. सिंह नयी 17 वीं स्क्वाड्रन ‘गोल्डन एरो’ के कमांडिंग ऑफिसर हैं. मई 2020 के अंत तक चार राफेल फाइटर का पहला सेट भारत को मिलेगा.

कैप्टन हरकीरत सिंह पहले मिग -21 के पायलट थे, उन्हें एयरक्राफ्ट और खुद की जान बचाने के लिए के लिए 2009 में शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था

23 सितंबर 2008 की रात को क्या हुआ था

ग्रुप कैप्टन हरकीरत सिंह तब स्क्वाड्रन लीडर थे उनको 23 सितंबर 2008 की रात दो विमानों वाली अभ्यास अवरोधन उड़ान (practice interception sortie) मिग 21 बाइसन में भरनी थी.

हरकीरत सिंह के अनुसार, तकरीबन चार किलोमीटर की ऊंचाई पर अवरोध प्रक्रिया के दौरान इंजन से तीन धमाके सुनाये दिए.

गैलेंट्री अवार्ड के प्रशस्ति पत्र ने लिखा गया है कि उन्होंने तुरंत आग पर काबू पा लिया. इसके कारण विमान को नीचे उतरने में आसानी हो सकी. यही नहीं, उन्होंने हेड-अप डिस्प्ले और मल्टी-फंक्शनल डिस्प्ले पर आंकड़ों को भी नहीं पाया.

केवल बैटरी से चलने वाले आपातकालीन फ्लडलाइट उपलब्ध होने के कारण कॉकपिट की रोशनी बंद हो गई थी. रेगिस्तान के ऊपर अंधेरी रात में उड़ान भरते समय जमीन पर बहुत कम रोशनी थी और आसमान में केवल तारे होने के कारण भटकाव बहुत जल्दी हो सकता था. अगर आग निकलती तो आपातकाल जैसी स्थिति हो सकती थी.

प्रशस्ति पत्र में यह भी कहा गया कि ‘इसके अलावा, कॉकपिट में मंद रोशनी के कम उपलब्ध उपकरणों के कारण इस स्थिति में भटकाव भी हो सकता है.

हरकीरत सिंह की कार्रवाई जिसने उनकी जान बचाई और उनका विमान भी

हरकीरत सिंह ने शांति से स्थिति का आकलन किया और नियंत्रित तरीके से प्रतिक्रिया दी. उन्होंने तुरंत विमान को स्टॉलिंग रेजीम में प्रवेश करने से रोक दिया गया.

 

कैप्टन सिंह ने बिना देर किए इंजन को फिर से चलाने के लिए रिकवरी की कार्रवाई की. ऐसा करते समय, उन्होंने अंधेरी रात में विमान को चलाने का कठिन काम जारी रखा. कॉकपिट में लाइट बहाल होने के बाद, उन्होंने ग्राउंड कंट्रोल इंटरसेप्ट कंट्रोलर से सहायता के साथ अंतिम नेविगेशन पर स्थिति की निगरानी के लिए बोर्ड नेविगेशन सिस्टम का उपयोग किया. उन्होंने कठिन परिस्थिति का सामना किया. उनको अंधेरी रात में विमान की लैंडिंग करनी थी जिसके लिए बेहद आला दर्जे की कौशल और साहस चाहिए.

प्रशस्ति पत्र में कहा गया कि ‘प्रतिकूल परिस्थितियों में मानसिक स्थिति के साथ उनकी पायलटिंग कौशल ने विमान को सफलतापूर्वक लैंड करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. विमान को बचाने के लिए उन्होंने अपनी सुरक्षा के प्रति लापरवाही बरती.

इसमें कहा गया है किसी भी गलत इनपुट या पायलट द्वारा देरी से की गई कार्रवाई के परिणामस्वरूप एक भयावह दुर्घटना हो सकती है. लैंडिंग के बाद, उन्होंने रनवे को बंद कर दिया और स्विच ऑफ कर दिया, जिससे अन्य विमान की रिकवरी संभव हो गई.

प्रशस्ति पत्र में कहा गया है कि उनकी त्वरित और उचित कार्रवाइयों ने श्रेणी- I दुर्घटना को रोका और एक मूल्यवान विमान को बचाया.

अभी इतने वर्षों तक निरंतर काम करता रहेगा चद्रयान 2 का आर्बिटर 

न्यूजडेस्क - देश के सबसे बड़े अभियान चंद्रयान2 का भले ही मिशन 100 फीसदी कामयाब न होकर 95 फीसदी ही कामयाब हो पाया हो मगर इतनी कामयाबी भी भारत को आगामी कई वर्षों तक निरंतर लाभ पहुँचाती रहेगी।  इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन का भले ही चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम से संपर्क टूट गया हो लेकिन वैज्ञानिकों ने विक्रम से संपर्क साधने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है, लैंडर विक्रम से संपर्क होगा या नहीं ये अभी कहना मुश्किल है, लेकिन इसरो के चीफ डॉ. के. सिवन पहले ही कह चुके हैं कि हमने 95 फीसदी इस मिशन की कामयाबी हासिल कर ली है, क्योंकि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर चांद पर 7 साल तक अपना काम करता रहेगा। दरअसल, चंद्रयान-2को चांद पर भेजा गया था उस समय ऑर्बिटरका वजन करीब 1,697 किलो का था, लेकिन जब चांद पर पहुंचा तो ऑर्बिटर का ईंधन करीब 500 किलो रह गया, जो 7 वर्ष से ज्यादा समय तक काम कर सकता है, लेकिन ये अतंरिक्ष के वातावरण पर निर्भर करेगा कि वह कितने साल तक काम करता रहेगा, क्योंकि ऑर्बिटर को अंतरिक्ष में पिंडों, उल्कापिंड़ों, सैटेलाइटों और तूफानों से बचने के लिए अपना स्थान बदलना पड़ेगा, ऐसे में एक जगह से दूसरी जगह जाने में ईंधन खर्च होगा, जिससे उसका जीवनकाल कम होगा। 1 सितंबर तक चांद के चारों ओर ऑर्बिटर पांच बार अपनी कक्षाओं में बदलाव कर चुका है, पृथ्वी हो या चांद हर बार उसके जगह बदलने पर ईंधन की खपत हो रही है, बताया जा रहा है कि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर फिलहाल चांद की कक्षा के 100 किमी दायरे में चक्कर लगा रहा है, इससे पहले ऑर्बिटर पृथ्वी के चारों तरफ 24 जुलाई से 6 अगस्त तक 14 दिनों में पांच चक्कर लगा चुका है. ऑर्बिटर को चांद की कक्षाओं में जाने के लिए 14 अगस्त को ट्रांस लूनर ऑर्बिट में डाला गया था. यहां से उसे लंबी यात्रा तय करनी थी, इसलिए 20 अगस्त को उसे चांद की कक्षा में डाला गया। 22 जुलाई को लॉन्च के समय ऑर्बिटर का कुल वजन 2,379 किलो था, इसमें ऑर्बिटर का 1697 किलो ईंधन का वजन भी शामिल था, यानि बगैर ईंधन के ऑर्बिटर का वजन सिर्फ 682 किलो है. लॉन्च होने के बाद GSLV-MK 3 रॉकेट ने ऑर्बिटर को पृथ्वी से ऊपर ऊपर 170x39120 किमी की अंडाकार कक्षा में पहुंचा दिया था, इसके बाद ऑर्बिटर ने खुद के ईंधन पर अपनी यात्रा तय की, ऑर्बिटर के पास कई पेलोड्स हैं  जो इसरो को जानकारी देंगे। चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर में ऑप्टिकल हाई रिजोल्यूशन कैमरा लगा हुआ है, जो चांद की सतह पर 1 फीट की ऊंचाई तक अच्छी तस्वीर ले सकता है, इसका पहला काम लैंडिग वाली जगह की डिजिटल एलिवेशन मॉडल (DEM) को जेनरेट करना है. इसी ने विक्रम लैंडर की तस्वीर ली, जो हाल ही में इसरो ने जारी की थी। यह पेलोड चांद पर एक्स-रे फ्लूरोसेंस स्पेक्ट्रा के बारे में जानकारी देगा. यानी चांद की सतह पर कैल्सियम, सिलिकॉन, एल्युमीनियम, मैग्नेशियम, टाइटैनियम, आयरन और सोडियम जैसे धातुओं की जानकारी देगा। इसका इस्तेमाल चंद्रयान-1 के मिशन में भी किया गया था. यह चांद की सतह का हाई रिजोल्यूशन तस्वीर ले सकता है, TMC-2 चांद की कक्षा से 100 किमी दूरी और उसकी सतह पर 5 मीटर से लेकर 20 किमी तक के एरिया की तस्वीर लेने में सक्षम है। चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर में लगा एक्सएसएम सूर्य और उसके कोरोना से निकलने वाले X-RAY के जरिए सूर्य के रेडिएशन की तीव्रता नापेगा, साथ ही ऑर्बिटर की ऊर्जा बनाए रखने में मदद करेगा। ये पेलोड चांद पर लूनर आयोनोस्फेयर की बारे में जानकारी जुटाएगा, इसके अलावा पृथ्वी के डीप स्टेशन नेटवर्क रिसीवर से सिग्नल रिसीव करने का कार्य करेगा। IIRS का मुख्य काम है कि चांद की ग्लोबल मिनिरलोजिकल और वोलटाइल मैपिंग करना, इसके अलावा पानी या पानी जैसे दिखने वाले पदार्थ का कम्प्लीट कैरेक्टराइजेशन करना।
फिलहाल अभी तक के मिशन से भी भारत ने अंतरिक्ष की दुनियसा में एक बड़ी सफलता अर्जित की है, और इसरो के वैज्ञानिक अब भी लैंडर से सम्पर्क स्थापित करने के लिए दिन रात एक करके जुटे हुए हैं। 

तीन कैमरों वाले इस फोन पर मिल रही है भारी छूट 

न्यूजडेस्क - अग्रणी मोबाइल कम्पनी Huawi अपने नए फोन में भारी छूट दे रही हैं, huawi Y9 को आज पहली सेल के साथ बाजार में उपलब्ध है, यह सेल अमेजन पर 12 बजे दोपहर से शुरू है, जो कि सिर्फ प्राइम मेंबर्स के लिए है। आम ग्राहकों के लिए यह सुविधा 8 अगस्त दोपहर से उपलब्ध है।  इस फोन की खरीद पर ऑफर दिए जा रहे हैं, इस फोन के लॉन्च ऑफर्स में Amazon 6 महीने की नो-कॉस्ट EMI ऑफर कर रहा है, इसी के साथ Amazon Pay पर 500 रुपये का कैशबैक दिया जा रहा है, इसी के साथ 1500 रुपये तक का एक्सचेंज ऑफर और SBI बैंक कार्ड के इस्तेमाल पर 10 % का इंस्टेंट डिस्काउंट भी मिल रहा है। Huawei Y9 Prime 2019 को 198 या 299 रुपये का Jio का रिचार्ज करवाने पर आपको 2200 रुपये का कैशबैक और 125GB अडिशनल 4G डेटा भी मिलता है, जानकारी के मुताबिक कैशबैक को सिर्फ वाउचर्स के रूप में ही रिडीम किया जा सकता है. इसका इस्तेमाल आप MyJio ऐप के जरिये फोन रिचार्ज में कर सकते हैं। फोन में 6.59 इंच का फुल व्यू डिस्प्ले के साथ 91 प्रतिशत स्क्रीन-टू-बॉडी रेशियो दिया गया है. ये फोन ओक्टा-कोर Kirin 710F से लैस है, इसके अलावा ये एंड्रॉयड 9 पाई पर बेस्ड EMUI 9.1 पर काम करता है। इस फोन में कैमरे की बात करें तो फोन में कंपनी ने ट्रिपल रियर कैमरा सेटअप उपलब्ध कराया है, इसमें आपको 16 मेगापिक्सल के प्राइमरी सेंसर के साथ 8 मेगापिक्सल का सेकंडरी सेंसर और 2 मेगापिक्सल का एक टर्शिअरी सेंसर मिलेगा, हुवावे Y9 प्राइम 2019 में 16 मेगापिक्सल का पॉप-अप सेल्फी कैमरा दिया गया है। 
हुवावे Y9 प्राइम का भारत में सिर्फ एक ही वेरिएंट में लॉन्च किया गया है, 4GB रैम+29GB स्टोरेज के साथ आने वाले इस फोन की कीमत 15,990 रुपये है। स्टोरेज की जहां तक बात है तो Y9 प्राइम 2019 में 128 जीबी की इंटरनल स्टोरेज दी गई है, जिसे माइक्रो एसडी कार्ड की मदद से 512 जीबी तक बढ़ाया जा सकता है। 

तो यह है मिशन चंद्रयान-2 की अहम खासियत 

न्यूजडेस्क - देश के ऐतिहासिक मिशन चंद्रयान-2 को सफलतापूर्वक लांच किया जा चूका है, अब चंदा मामा की दूरी भले ही हमसे कम रही गयी हो मगर इससे अहम बात यह है कि जिस मिशन चंद्रयान-2 पर भारत सहित पूरे विश्व की निगाहें थी वह किन उद्देश्यों को लेकर पृथ्वी से चन्द्रमा की सतह पर जा रहा इसके बारे में जानकारी होना बहुत जरुरी है।   
चंद्रयान-2 पहला अंतरिक्ष मिशन है जो चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र पर सफलतापूर्वक लैंडिंग करेगा, पहला भारतीय अभियान है, जिसके जरिए स्वदेशी तकनीक से चंद्रमा की सतह पर उतरा जाएगा,  पहला भारतीय अभियान है जो देश में विकसित टेक्नोलॉजी के साथ चांद की सतह के बारे में जानकारियां जुटाएगा। अमेरिका, रूस, चीन के बाद चंद्रमा की सतह पर रॉकेट उतारने वाला भारत चौथा देश बन गया है।  
सबसे पहले बात चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र में लैंडिंग की, चंद्रयान-2 वहां उतरेगा जहां आज तक किसी देश ने उतरने की कोशिश ही नहीं की है, ये अपने आप में खास इसलिए है क्योंकि वहां लैंडिंग नहीं होने के कारण कई ऐसे रहस्य हैं जिसका खुलासा भारत कर सकता है। 
चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव खास तौर से दिलचस्प है क्योंकि इसकी सतह का बड़ा हिस्सा उत्तरी ध्रुव की तुलना में अधिक छाया में रहता है, इसके चारों तरफ स्थायी रूप से छाया में रहने वाले इन क्षेत्रों में पानी होने की संभावना है, चांद के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र के ठंडे क्रेटर्स (गड्ढों) में शुरुआती सोलर सिस्टम के जीवाश्म रिकॉर्ड मौजूद हैं। मतलब साफ है कि चांद की जमीन से ऐसी जानकारी जुटाने और ऐसी खोज करने से न सिर्फ भारत बल्कि पूरी मानवता को फायदा होगा, इन परीक्षणों और अनुभवों के आधार पर ही आगे होने वाले चंद्र अभियानों की तैयारी में जरूरी बड़े बदलाव लाना है, ताकि आने वाले दौर के  अभियानों में अपनाई जाने वाली नई टेक्‍नॉलोजी तय करने में मदद मिले। फिलहाल चंद्रयान-2 अपने अभियान की तरफ बढ़ चुका है, अब पूरे देश को उसके चाँद की उस सतह पर उतरने का इन्तजार है जहाँ तक अभी सिर्फ दुनिया के तीन देश ही जा सके हैं।  
चंद्रमा धरती का सबसे नजदीकी उपग्रह है. इसपर फतह हासिल करके स्पेस में रिसर्च की कोशिश की जा सकती है, इससे जुड़े आंकड़े भी जुटाए जा सकते हैं. चंद्रयान-2 मिशन आगे के सभी अंतरिक्ष मिशन के लिए जरूरी टेक्नोलॉजी आजमाने का परीक्षण केंद्र भी होगा, साथ ही चांद, हमें धरती के क्रमिक विकास और सोलर सिस्टम की छिपी हुई कई जानकारियों दे सकता है, फिलहाल, कुछ मॉडल मौजूद हैं, लेकिन चंद्रमा के बनने के बारे में और भी साफ होने की जरूरत है. इस मिशन से चांद कैसे बना और उसके विकास से जुड़ी जानकारी जुटाई जा सकेगी। सबसे खास बात ये है कि पानी होने के सबूत तो चंद्रयान 1 ने खोज लिए थे और अब ये पता लगाया जा सकेगा कि चांद की सतह और उपसतह के कितने भाग में पानी है. दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र में लैंडिंग पानी की खोज के के लिए मददगार साबित होगा। 
चंद्रयान-2 में GSLV Mk-III भारत का अब तक का सबसे शक्तिशाली लॉन्चर है, और इसे पूरी तरह से देश में ही बनाया गया है, और ऑर्बिटर, चंद्रमा की सतह का निरीक्षण करेगा और पृथ्वी तथा चंद्रयान 2 के लैंडर - विक्रम के बीच संकेत रिले करेगा, वहीं लैंडर विक्रम (विक्राम साराभाई के नाम पर रखा गया है) को चंद्रमा की सतह पर भारत की पहली सफल लैंडिंग के लिए डिज़ाइन किया गया है, तथा प्रज्ञान रोवर- रोवर ए आई-संचालित 6-पहिया वाहन है, इसका नाम ''प्रज्ञान'' है, जो संस्कृत के ज्ञान शब्द से लिया गया है।  

 

चंद्रयान 2 की लांचिंग का काउंटडाउन जारी,  दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला होगा पहला यान 

नई दिल्ली - देश ले लिए एक और बड़ी उपलब्धि हासिल करने जा रहे इसरो का महत्वपूर्ण मिशन चंद्रयान 2  लांचिंग के लिए तैयार है , इसके लिए काउंटडाउन शुरू हो गया है। चंद्रयान 2  दक्षिणीं ध्रुव पर उतरने वाला पहला चंद्रयान होगा अब तक जितने भी यान चाँद पर गए हैं वह सब उत्तरी ध्रुव की पड़ताल करने तक सीमीत रहे हैं। 15 जुलाई तड़के 2 बजकर 51 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन केंद्र से चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग होगी. बताया जा रहा है जा रहा है कि 6 सितंबर को यह चांद की सतह पर लैंड करेगा, यह पहली बार है जब भारत चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करवाएगा।  
इससे पहले भारत ने चंद्रयान-1 के दौरान चंद्रमा पर मून इंपैक्ट प्रोब (एमआईपी) उतारा था, लेकिन इसे उतारने के लिए नियंत्रित ढंग से चंद्रमा पर क्रैश करवाया गया था, इस बार विक्रम (लैंडर) और उसमें मौजूद प्रज्ञान (छह पहिये का रोवर) चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करवाएंगे.


दक्षिणी ध्रुव पर करेगा लैंड


चंद्रयान-2 दुनिया का पहला ऐसा यान होगा, जो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा, चांद का यह हिस्सा वैज्ञानिकों के लिए अब तक अनजान बना हुआ है,  बाकी हिस्से की तुलना में ज्यादा छाया होने की वजह से इस क्षेत्र में बर्फ के रूप में पानी होने की संभावना ज्यादा है,वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस हिस्से में भविष्य में बेस कैंप बनाए जा सकेंगे, ऐसे में चंद्रयान-2 का महत्व पूरी दुनिया के लिए बढ़ जाता है। बताते चलें कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं, चंद्रमा पर हर दिन तापमान घटता-बढ़ता रहता है, लेकिन दक्षिणी ध्रुव पर तापमान में ज्यादा बदलाव नहीं होता, यही कारण है कि वहां पानी मिलने की संभावना सबसे ज्यादा है।  

 

ट्राई के नियमों के ऊपर है वोडाफोन-आईडिया

वोडाफोन व आईडिया के मर्ज होने के बाद उपभोक्ताओं के लिए बढ़ी परेशानियां

रायबरेली - देश भर में आइडिया व वोडाफोन के संविलयन के बाद सबने सोचा था कि आईडिया और वोडाफोन अपने उपभोक्ताओं को बेहतर सेवाएं प्रदान करेगा मगर इसके उलट आईडिया की सेवाएं और खराब होती जा रही हैं।उपभोक्ताओं को सुविधाएं मिले इसके लिए ट्राई के बहुत कठोर नियम हैं। समस्या समाधान के लिए समय सीमा भी तय है। जिसमे कम्पलशेसन तक की व्यवस्था है, लेकिन इन कम्पनियों की मनमानी ने आदी बन चुके आम उपभोक्ताओं का जीना मुश्किल कर रखा है। सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र व वीवीआईपी जनपद रायबरेली में शहरी क्षेत्र में आईडिया उपभोक्ताओं को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है वहीं ग्रामीण क्षेत्र में भी आईडिया की सुविधाएं अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही हैं। आईडिया की बदतर सुविधाओं की रोजाना शिकायते हो रही है। और इनमें सुधार न आने पर अब उपभोक्ता सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकालने में लगे हैं।

शहर क्षेत्र के तेलियाकोट निवासी यामीन और असलम ने बताया कि हम लोगो का छोटा व्यवसाय है ज्यादा पैसे नही है। आम लोगो के ऑनलाइन रेलवे/हवाई जहाज के टिकट बुक कर के दो पैसे कमा रहे हैं जिससे किसी तरह परिवार का पेट भरता है। किंतु आईडिया के नेटवर्क की समस्या के चलते अक्सर पैसे कट जाते हैं और टिकट भी नही बुक होता है। जो काफी दिन बाद वापस आता है। बाद में खाते में पैसे न होने से दूसरे टिकट नही बुक हो पाते हैं जिससे व्यवसाय कुछ महीनों से चौपट हो गया है। सत्य नगर निवासी सुरेश यादव, मृत्युंजय मिश्र ने भी न्यूज़ प्लस से आईडिया के नेटवर्क के बारे में बात करते हुए बताया कि उनके बच्चों को लेकर बारिश में जब वो स्कूल जाते है तो स्कूल बंद होने का मैसेज दोपहर में उनके मोबाइल पर आ पाता है। ऐसे में दुबारा बच्चो को लाने की कसरत उन्हें रोज करनी पड़ रही है वही दूसरे सह गार्जियनो के एयरटेल और जिओ के मोबाइल पर वही मैसेज सुबह ही आ जाते हैं।

तिलकनगर निवासी लक्ष्मी नारायण शुक्ल ने बताया कि हाल ही में उन्होंने अपना नम्बर पोर्ट करवा कर किसी तरह इस समस्या से निजात पाई है। मलिकमऊ निवासी शिवम भदौरिया, वरिष्ठ पत्रकार रोहित मिश्र और सौरभ शुक्ला ने भी नेटवर्क में बात न हो पाने और समाचार संकलन में समस्या होने की बात की। इन लोगो ने आईडिया को चेतावनी देते हुए नेटवर्क सुधारने की बात की है। शहर के एक अन्य व्यवसायिक संस्था के अधिकारी किशन मौर्य ने बताया कि संस्था में चालीस से अधिक सीयूजी पोस्टपेड नम्बर चल रहे है वो सभी सिम कार्ड को पोर्ट कराकर कम्पनी बदलने पर विचार कर रहे हैं। 

जनपद के ही पत्रकारपुरम निवासी महेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि उनके आईडिया पोस्टपेड नम्बर पर पहले नेटवर्क सम्बन्धी समस्या हुई मगर शिकायत के बाद भी अब तक कोई हल नहीं निकला। प्रदेश से बाहर रहने के दौरान अचानक आईडिया का नम्बर बन्द हो गया, और लगातार कई दिनों तक उसमे सिग्नल नही आने से महेंद्र को न सिर्फ व्यवसायिक नुकसान हुआ, बल्कि मोबाइल न काम करने से मोबाइल बैंकिंग जैसी कई समस्याओं का सामना भी करना पडा। उनके मुताबिक उन्होंने कई बार जनपद में खुले आईडिया केयर मा गायत्री इंटरप्राइजेज में भी शिकायत करवाई। जिसमे इंटरप्राइजेज के प्रोपराइटर अभय श्रीवास्तव ने अपने उच्चाधिकारियों को ईमेल द्वारा शिकायत भेजी।

न्यूज़ प्लस से अभय श्रीवास्तव ने बताया कि आईडिया और वोडाफोन अब एक ही कम्पनी समझी जाएगी और जल्द ही बेहतर नेटवर्क उपभोक्ताओं को दिया जाएगा। अभय की माने तो आईडिया-वोडाफोन नेटवर्क जल्द ही नम्बर एक नेटवर्क होगा। 

लेकिन इनके दावे के विपरीत उपभोक्ताओं की माने तो इन समस्याओं की मूल जड़ आईडिया और वोडाफोन का एक होना है। इनके क्षेत्र में कार्य कर रहे इंजीनियर एक दूसरे पर जिम्म्मेदारी थोप कर भाग खड़े होते हैं। दोनों कम्पनियों के लापरवाह इंजीनियरों ने ही व्यवस्था ध्वस्त करने में अहम भूमिका निभाई है। आईडिया में तैनात बेहद लापरवाह हार्डवेयर इंजीनियर पंकज ने अब तक शिकायत निस्तारण के नाम पर सिर्फ खाना पूर्ति ही कि है जिससे समस्या समाधान के बजाय बढ़ती गई और हालात ये हो गए हैं। उपभोक्ताओ की लाखों मिन्नतों के बाद टालमटोल कर अधूरे समाधान से अपनी पीठ थपथपाने वाले पंकज ने आईडिया के नेटवर्क को शायद डुबोने का जिम्मा उठा रखा है। हार्डवेयर इंजीनियर पंकज से न्यूज़ प्लस ने सम्पर्क करने की कोशिश की लेकिन उनसे बात नही हो सकी।

 इन लोगो की तरह रायबरेली में हजारों की संख्या में ऐसे उपभोक्ता हैं जो लम्बे समय से आईडिया के उपभोक्ता रहे हैं मगर अब हो रही समस्याओं के चलते कम्पनी बदलने पर विचार करने लगे हैं, मगर आईडिया की तरफ से अब भी शिकायतों पर कार्यवाही की कोई पहल नही की जा रही है।

क्या आपके टूथपेस्ट में प्लास्टिक है ?

साइंस डेस्क : पर्यावरण इंजीनियर मार्टिन लोएडर जब भी अपने दांत साफ करते, उनकी जबान पर एक सफेद सी परत रह जाती. मार्टिन को अंदाजा तो था कि यह क्या हो सकता है लेकिन उन्होंने अच्छे से पता लगाने का सोचा. उन्होंने ट्यूब का टूथपेस्ट दस माइक्रोमीटर पतली जाली में डाला. एक माइक्रोमीटर मिलिमीटर का 100वां हिस्सा होता है. जाली पर जो बचा, उसे उन्होंने माइक्रोस्कोप के नीचे देखा. उन्हें दिखी, सुंदर गोल प्लास्टिक की बूंदे.

टूथपेस्ट में प्लास्टिक का क्या काम?

माइक्रोप्लास्टिक के ये कण अक्सर पीलिंग प्रोडक्ट में काम में आते हैं, जैसे चेहरा साफ करने वाला जेल. इससे सफाई का इफेक्ट आता है और त्वचा पर जमी डेड स्किन निकल जाती है. प्लास्टिक के ये कण नर्म होते हैं और इसलिए इन्हें टूथपेस्ट में इस्तेमाल किया जाता है. क्योंकि इससे मसूढ़ों को नुकसान हुए बिना सफाई की जा सकती है. इतना ही नहीं ये माइक्रोप्लास्टिक लिपस्टिक, मस्कारा और मेकअप उत्पादों में भी होती है. अगर आप अपने स्क्रब, फाउंडेशन या टूथपेस्ट पर लिखी जानकारी पढ़ेंगे तो उसमें पोलीएथिलीन (पीई), पोलीप्रॉपिलेन (पीपी) जैसा कुछ लिखा मिलेगा. ये कुछ और नहीं, प्लास्टिक ही है. यानि ये कोई राज नहीं. लेकिन कॉस्मेटिक कंपनियां इस मुद्दे पर बात करना पसंद नहीं करती.
वहीं कुछ कंपनियां दावा करती हैं कि वे आने वाले दिनों में माइक्रोप्लास्टिक का विकल्प तैयार करेंगी और उत्पादन में धीरे धीरे बदलाव करेंगी. लॉरिएल ने डॉयचे वेले को ईमेल में बताया कि 2017 तक वह अपने उत्पादों से माइक्रोप्लास्टिक हटा देगा. नीवीया बनाने वाली कंपनी बायर्सडॉर्फ ने भी वादा किया है कि 2015 के अंत प्लास्टिक किसी उत्पाद में नहीं मिलेगा.


खाद्य चक्र में मिला प्लास्टिक

क्योंकि मुद्दा सिर्फ उत्पादों में प्लास्टिक के इस्तेमाल का नहीं है. ये बूंदे घुलनशील नहीं होते और इसलिए पानी से होते हुए मिट्टी, नदी और समंदर तक पहुंच जाते हैं. मछलियां इन्हें निगल लेती हैं और इंसान मछलियां खाता है.

मार्टिन लोएडर 2011 से माइक्रोप्लास्ट नाम के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं और उत्तरी और बाल्टिक सागर में प्लास्टिक के इन कणों के प्रदूषण के बारे में शोध कर रहे हैं, ताकि जरूरत होने पर जर्मनी का शिक्षा और शोध मंत्रालय इस पर रोक लगाने के बारे में विचार करे. पर्यावरण संस्था नाबू के मुताबिक उत्तरी सागर में सालाना 20,000 टन प्लास्टिक फेंका जाता है. माइक्रोप्लास्टिक की समस्या यह है कि वह पानी में मिले हुए जहरीले केमिकल को आकर्षित करता है और उनसे मिल कर जहरीला कॉकटेल बना लेता है. फिर मछलियां इसे खाती हैं और इन मछलियों के साथ ये प्लास्टिक हमारी प्लेट में आ जाता है.

माइक्रोप्लास्टिक से निबटने के लिए वालेडा नाम की कंपनी अब मोम का इस्तेमाल करने लगी है. वहीं कई अन्य कंपनियां टूथपेस्ट में सिलिका, सोडियम और कैल्शियम कार्बोनेट का इस्तेमाल कर रही हैं.