भूस्खलन के बारे में सब कुछ

जब बात भूस्खलन, किसी ढलान पर मिट्टी, पत्थर या बर्फ का अचानक नीचे गिरना. इसे कभी‑कभी भूमिध्वस्त भी कहा जाता है तो समझिए कि यह प्राकृतिक आपदा क्यों खतरनाक है। अक्सर भारी वर्षा, मॉनसून के दौरान लगातार तेज़ बारिश या भूकंप, भूस्तर पर अचानक उत्पन्न कंपन जैसे घटनाओं से ट्रिगर हो जाता है। यह भौगोलिक स्थल, पहाड़ी और घाटी क्षेत्रों में ज्यादा देखा जाता है, जहाँ ढलान की स्थिरता कमजोर होती है। यही कारण है कि स्थानीय सुरक्षा प्रणाली, पहले चेतावनी और बचाव योजनाएँ का होना ज़रूरी है।

मुख्य कारणों में लगातार भारी वर्षा का जलजमाव, मिट्टी का ढीला होना और जल की तेज़ बहाव शामिल हैं। जब पानी जमीन के भीतर से ऊपर उठता है, तो वह मिट्टी को हल्का कर देता है और एक बिंदु पर दीवार गिरने लगती है। इसी तरह, एक तेज़ भूकंप जमीन को हिला देता है, जिससे पहले से अस्थिर ढलान तुरंत ढह सकती है। इन दो कारकों का संयोजन अक्सर विनाशकारी परिणाम देता है, क्योंकि न तो लोग समय पर चेतावनी सुन पाते हैं और न ही बचाव के लिए पर्याप्त तैयारी कर पाते हैं।

भारत में हिमालयी क्षेत्र, पश्चिमी घाट, मध्य भारत की पठारी और उत्तराखंड‑सिक्किम के खड़ी पहाड़ियों में भूस्खलन की संभावना अधिक है। इन क्षेत्रों की विशेषता है तीखा ढलान, बहते नदियों का किनारा और कमजोर चट्टानें। जहां मानसून का जल अधिक जमा होता है, वहीं बंधी बर्फ के पिघलने से भी जलधारा का दबाव बढ़ जाता है। इस कारण इन भौगोलिक स्थलों में मौसम बदलते ही सतह अस्थिर हो जाती है।

भूस्खलन के प्रभाव केवल जमीन तक सीमित नहीं रहते। जब बड़े पैमाने पर मिट्टी नीचे गिरती है, तो सड़कें बंद हो जाती हैं, पुल टूटते हैं, बिजली लाइन कटती है और गाँवों में घर बिखर जाते हैं। इस प्रक्रिया में अक्सर लोगों की जान भी चली जाती है, और बची हुई आबादी को तत्काल राहत और पुनर्वास की जरूरत पड़ती है। बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचने से आर्थिक नुकसान भी भारी हो जाता है, क्योंकि व्यापार बंद हो जाता है और आजीविका प्रभावित होती है।

भूस्खलन से बचाव के उपाय

सरकार और स्थानीय निकाय अब प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करके चेतावनी प्रणाली स्थापित कर रहे हैं। सैटेलाइट इमेजिंग, रडार और GIS मैपिंग के जरिए संभावित जोखिम क्षेत्रों की पहचान की जाती है। जैसे ही जलस्तर उंचा होता है, अलार्म बजते हैं और लोगों को खाली करने के निर्देश मिलते हैं। ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट प्रणाली (GNSS) से गिरते मलबे की गति भी ट्रैक की जाती है, जिससे बचाव दल जल्दी पहुँच पाते हैं।

भूस्खलन को रोकने के लिए दीर्घकालिक उपाय भी जरूरी हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में पेड़ लगाना, जड़ें गहरी करने वाली वृक्षावली उगाना और ढलानों को चट्टानों से reinforce करना मददगार साबित होता है। साथ ही जल निकासी के लिए नालियां बनाना, मेधावी जलभंडारण बनाना और बाढ़ नियंत्रण प्रबंधन से वर्षा जल का सही मार्ग तय किया जा सकता है। ग्रामीण लोग भी अपने फसल क्षेत्र को सुरक्षित रखने के लिए टेकड़ी के नीचे नहीं, बल्कि सुरक्षित स्तर पर खेती करने की कोशिश कर रहे हैं।

पिछले कुछ वर्षों में कई बड़ी घटनाएं हुईं। 2023 में उत्तराखंड के कँपुर में अचानक हुई भूस्खलन से 30 से अधिक लोगों की जान गई। 2021 में महाराष्ट्र के अण्डी में भारी बारिश के बाद कई गांव विस्थापित हुए। इन घटनाओं ने दिखाया कि चेतावनी मुहैया कराने में देरी होने से जीवन और संपत्ति को बड़ी क्षति पहुंचती है। प्रत्येक दुर्घटना से सीख लेकर नई नीतियां तैयार की जा रही हैं, पर अभी भी कार्यान्वयन में चुनौतियां बाकी हैं।

स्थानीय समुदाय का सहयोग भी अहम है। जागरूकता कार्यक्रम, स्कूलों में भूस्खलन के जोखिम और बचाव तकनीक की ट्रेनिंग, और स्वयंसेवकों की तैयारी से बड़ी आपदाओं को रोका जा सकता है। लोग अपने घर के पास के पत्थर और मिट्टी की स्थिति को नियमित जांच कर सकते हैं और जोखिम महसूस होने पर प्रशासन को रिपोर्ट कर सकते हैं। इस प्रकार सामुदायिक भागीदारी से शुरुआती चेतावनी मिलती है और तेज़ प्रतिक्रिया संभव होती है।

ट्रेवलर्स और यात्रियों को भी सावधानी बरतनी चाहिए। मौसम की पूर्वानुमान देखना, सरकारी वेबसाइट पर सड़कों की स्थिति जांचना, और यदि चेतावनी जारी हो तो वैकल्पिक मार्ग चुनना ज़रूरी है। कई बार एक छोटी सी लापरवाही बड़े हादसे का कारण बन जाती है, इसलिए यात्रा योजना में जोखिम मूल्यांकन को जोड़ना समझदारी है।

भूस्खलन से जुड़े विस्तृत रिपोर्ट, नक्शे और सहायता सामग्री को सरकारी पोर्टल, एनजीओ और विज्ञान संस्थानों की वेबसाइटों पर पाया जा सकता है। इन संसाधनों को पढ़कर आप अपने घर और परिवार की सुरक्षा योजना बेहतर बना सकते हैं। अब आप इस पेज पर नीचे दी गई खबरों में भूस्खलन से जुड़ी अद्यतन जानकारी और विश्लेषण पाएँगे, जो आपको भविष्य में सुरक्षित रहने में मदद करेंगे।

डार्जिलिंग में भारी बारिश और भूस्खलन के कारण सभी स्कूल‑कॉलेज 8‑10 अक्टूबर तक बंद रहे, लगभग 70 हज़ार छात्रों को असर, पुनः खुलने की उम्मीद 13 अक्टूबर।