रायबरेली । विश्व प्रसिद्ध केएमसी विशेषज्ञ डाॅ० बारबरा मोरिसन की उपस्थिति में जिला मुख्यालय में स्थित विकास भवन में मुख्य चिकित्साधिकारी डा0 डीके सिंह की अध्यक्षता में कम्युनिटी एम्पावरमेंट लैब द्वारा एक दिवसीय कंगारू मदर केयर एवं लो बर्थ वेट मैनेजमेंट वर्कशॉप का आयोजन किया गया। वहीं अमेरिका से आयी केएमसी विशेषज्ञ डाॅ० बारबरा ने 11 सीएचसी अधीक्षकों व स्टाफ नर्सों के साथ बैठक की । वर्कशाप का उद्घाटन वर्कशॉप के मुख्य अतिथि जिला विकास अधिकारी देवेन्द्र कुमार पाण्डेय द्वारा किया गया।श्री पाण्डेय ने बताया कि केएमसी के विषय में जानकर वे वाकई आश्चर्यचकित रह गए। KMC वाकई एक जादू की झप्पी की तरह है, कैसे केएमसी में आते ही बच्चा दूध पीने के लिए अपने आप ही माँ के स्तनों के पास पहुँच जाता है।
उन्होंने यह तसल्ली दी की डॉ.बारबरा का अमेरिका से सीधे रायबरेली आना वाकई फायदेमंद होगा, हम सब मिलकर KMC को पूरे जिलें में ले जाएंगे।
वर्कशाप की अध्यक्षता कर रहे मुख्य चिकित्साधिकारी डा0 डीके सिंह ने कहाकि ” रायबरेली जिला पूरे एशिया में सबसे पहला ऐसा जिला है जिसमें हर ब्लाक के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में केएमसी यूनिट खुल गया है, जो समूचे जनपद के लिए गौरव का विषय है। इसी क्रम में जिला महिला चिकित्सालय प्रभारी डॉ.रेनू चौधरी एवं एडिशनल सीएमओ डॉ.चक ने कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए कहाकि-
गर्भधारण के नौ महीने किसी भी महिला के जीवन का सबसे अहम वक्त होता है। इस दौरान उसे जरूरत होती है बेहद संभलकर रहने की, अपना खास खयाल रखने की। एक गर्भवती महिला के लिए जरूरी हैं कि वह पौष्टिक आहार लेकर अपने और गर्भ में पल रहे शिशु के फिटनेश को बनाये रखे।
अमेरिका से आयी विश्व प्रसिद्ध केएमसी विशेषज्ञ
डाॅक्टर बारबरा मोरिसन ने केएमसी पर विश्तृत रुप से प्रकाश डालते हुए कहाकि-
कंगारू देखभाल क्या है
कंगारू देखभाल एक ऐसी तकनीक है जो नवजात अपरिपक्व शिशुओं के लिए काफी मददगार होती है ।अपरिपक्व (‘प्री-टर्म’) शिशुओं की सेहत सुधारने में मदद करती है। इस तकनीक में वयस्क शिशु को अपने अंग से लगाकर रखा जाता है । “ठीक वैसे ही जैसे कंगारू अपने शिशु को अपने करीब रखता है।”अपरिपक्व (प्री-टर्म) शिशुओं को दिन में कुछ घंटों के लिए कंगारू देखभाल की जरूरत पड़ती है । लेकिन जब वे मेडिकल तौर पर स्थिर हो जाते है, तब इस तकनीक का समय बढ़ाया जा सकता है। कुछ माता-पिता अपने बच्चों को, प्रतिदिन, कई घंटों के लिए अपने हाथों में रख सकते हैं। कंगारू देखभाल, यह नाम, उन मारसुपायल्स जानवारों से दिया गया है, जो उनके बच्चे को अंग के पास पकड़ते हैं. शुरू में, यह तकनीक उन अपरिपक्व, प्री-टर्म शिशु के लिए विकसित की गयी थी जो उन क्षेत्रों में जन्मे थे, जहां इन्क्यूबेटर उपलब्ध नहीं थे या जहां इन्क्यूबेटर अविश्वसनीय थे।
कंगारू देखभाल शिशु को अपने मां या पिता के पास – त्वचा से त्वचा के साथ सीधे से संपर्क में रखकर, नवजात शिशु को अपने माता या पिता के निकटता पुनःस्थापन करना चाहता है। यह शारीरिक और मनोवैज्ञानिक आंतरिकता और संबंध सुनिश्चित करता है। माता-पिता के शरीर का तापमान नवजात शिशु का तापमान को इनक्यूबेटर की अपेक्षा अधिक आसानी से – स्थिर रखने में मदद करता है और स्तनपान के लिए तत्काल पहुंच देता है । डाॅ0 बारबरा ने कहाकि आज 250 से अधिक नवजात गहन केयर यूनिट कंगारू देखभाल का प्रयोग कर रहे हैं।अमेरिका में आज-कल 85 प्रतिशत नवजात गहन देखभाल इकाइयां (एन.ई.सी.यू), कंगारू देखभाल को संयुक्त उपयोग कर रही हैं। कंगारू देखभाल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि, प्री-माचुर शिशु होने के बावजूद भी, कंगारू अधिष्ठान में रखने से उन्हें जल्दी अस्पताल से छुट्टी मिलती थी। कंगारू देखबाल से प्री-माचुर (समय से पहले जन्मे) शिशु और कम वजन के नये जन्मे शिशु के उत्तरजीविता दरों में सफल और सुधार होता है। इस तकनीक से नोसोकोमिअल संक्रमण, गंभीर बीमारी और श्वसन पथ रोग भी कम होती है।
वर्कशॉप का अंत करते हुए कम्युनिटी एम्पावरमेंट लैब की निदेशक आरती कुमार ने बताया कि,“केएमसी माँ और शिशु देखभाल का ही एक भाग है,यह माँ और शिशु की सही देखभाल का एक तरीका और सेवा है”.
जो सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों के लिए पहचान बनेगा। कार्यशाला में सेल की टेक्निकल टीम के विषय में भी विस्तृत रुप से चर्चा की गयी। मौके पर सामुदायिक स्वास्थ केंद्रों के अधीक्षक के साथ ही वहां की स्टाफ नर्सें व सभी अग्रिमायें उपस्थित रही।
रायबरेली से न्यूज प्लस के लिए अंगद राही की
रिपोर्ट