अन्तरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस पर हर्षोउल्लास पूर्वक मनायी गयी गांधी एवं शास्त्री जयन्ती
रायबरेली(शिवगढ़) अन्तरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस पर समूचे जनपद में सरकारी,गैर सरकारी इमारतों एवं शिक्षण संस्थानों में बड़े ही धूम-धाम के साथ राष्टध्वज फहराकर- राष्ट्रपिता महात्मा गांधी व देश के द्वितीय प्रधानमंत्री पंण्डित जवाहर लाल नेहरु का जन्म दिवस मनाया गया। इस पावन अवसर पर शिवगढ़ क्षेत्र के न्यू पब्लिक एकाड़मी इण्टर कालेज भवानीगढ़ में कालेज के प्रबन्धक विवेक बाजपेई द्वारा ध्वजारोहण कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। कालेज के प्रधानाचार्य अनूप पाण्डेय ने गांधी के जीवन पर विस्तृत रुप से प्रकाश डालते हुए कहाकि
2 अक्टूबर 1869 को गुजरात राज्य के पोरबंदर जिले में एक ऐसे महापुरुष का जन्म हुआ था, जिन्होंने सत्य और अहिंसा के पथ पर आजीवन चलते हुए विश्व के सबसे ताकतवर सम्राज्यी शक्ति ब्रिटेन को परास्त करने में सफलता अर्जित की थी।
गुजराती ब्राह्मण परिवार में जन्मे महात्मा गांधी जिनका पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गांधी था। इनके पिताजी का नाम करमचन्द और माताजी का नाम पुतलीबाई था। मात्र 13 वर्ष की अवस्था में इनका विवाह कस्तूरबा गांधी के साथ हो गया था। उन्होने आरम्भिक शिक्षा अपने जिले के ही एक विद्यालय से ही प्राप्त की थी। आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें इंग्लैंड भेज दिया गया। जहाँ से बैरिस्टर (वकालत) की पढ़ाई कर भारत लौटे गांधी ने कुछ समय तक अहमदाबाद में वकालत की। बाद में एक केस के सिलसिले में उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। गांधीजी की अफ्रीका यात्रा उनके जीवन का अहम मोड़ था। साउथ अफ्रीका में मूल निवासियों तथा प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ वहां की गोरी सरकार के अत्याचार दमन का सामना उन्हे भी करना पड़ा। एक बार रेल यात्रा के दौरान वे गोरो लोगों के डिब्बे में बैठ गये थे. रंगभेद की निति के चलते अंग्रेज लोगों ने गांधीजी को डिब्बे से बाहर कर दिया। ” ये पंक्तियां गाॅधी जी की पीड़ा को बयां करती हैं- ” है भली भांति ये याद मुझे, गोरों ने कैसा व्यवहार किया। काला अछूत कहकर, गाड़ी से मुझे उतार दिया।” गाॅधी जी ने महसूश किया किया कि ये मेरा ही अपमान नही प्रत्येक हिन्दुस्तानी का अपमान है। इस घटना से आहत होकर उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में ही रंगभेद के खिलाफ सत्याग्रह शुरू कर दिया। गाॅधी जी के आन्दोलन के कुछ हद तक वहां समानता की स्थति बनने के बाद गांधी 1915 में वेशभारत लौट आए।
जब गांधीजी भारत लौटे तो कुछ किसान नेताओं ने उनका ध्यान स्थानीय नील व्यापरियों तथा जमीदारों द्वारा कृषकों के शोषण की घटनाओं के विषय में अवगत कराया। किसानों तथा मजदूरों के शोषण के खिलाफ इन्होने खेड़ा और चम्पारण नामक क्षेत्रों में किसान आंदोलनों का नेतृत्व किया। जब अंग्रेज सरकार को इस प्रकार के सत्याग्रह विरोध की जानकारी मिली तो उन्होंने गांधीजी को जेल में बंद करने का आदेश दे दिया। मगर किसानों और मजदूरों को मिली एक आशा की किरण को वे किसी भी सूरत में समाप्त नही होने देना चाहते थे। अतः उन्होंने अपने विरोध आंदोलन को सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में जारी रखा तथा गांधीजी को रिहा करने को लेकर आंदोलन का अल्टीमेटम जारी कर दिया। स्थति को समझते हुए अंग्रेज सरकार ने आन्दोलन की सभी मांगो को मानते हुए महात्मा गांधी को जेल से रिहा कर दिया। इस तरह भारत में पहले राजनितिक संघर्ष में मिली सफलता के बाद सत्य और अहिंसा के दम पर इन्होने भारत को आजाद कराने का संकल्प लिया। इसके बाद 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के जलियावाला बाग नामक स्थान पर ब्रटिस हुकूमत द्वारा हजारों निर्दोष नागरिकों को बेरहमी मौत के घाट उतार दिया गया। जिसके विरोध में गांधीजी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन में सभी भारतीय अधिकारी, शिक्षक और अंग्रेजी सेवा में काम करने वाले सभी भारतीय ने अपने काम का त्याग कर गांधीजी के समर्थन में सड़को पर आए गये थे। इसके बाद दांडी नमक सत्याग्रह, स्वदेशी आंदोलन, हरिजन आंदोलन तथा भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व भी गांधीजी भी गाॅधी जी द्वारा किया गया। इसी क्रम में कालेज के शिक्षक सत्यप्रकाश वर्मा,आशीष शुक्ल,पुष्करनाथ शुक्ल,अनिरुद्ध कुमार द्वारा राष्ट्र पिता महात्मा गांधी व पं0 लाल बहादुर शास्त्री के जीवन पर प्रकाश डाला गया।इस मौके पर कालेज की छात्रा अमिता,प्रिन्सी, आकृति,शिवांगी छात्र अमर आगमन सहित ने विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करके सबका मन मोह लिया। वहीं क्षेत्र की पिपरी प्रधान अनुपमा तिवारी, प्रधान प्रतिनिधि नन्द किशोर तिवारी,ग्राम विकास अधिकारी के नेतृत्व में ग्रामसभा में स्वच्छता अभियान चलाकर राष्ट्र के प्रति स्वच्छता का संदेश दिया गया। जिसमें ग्रामीणों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। तत्पश्चात प्रधान अनुपमा तिवारी द्वारा पंचायत भवन भवनपुर में ध्वजा रोहणकर बड़े ही धूम धाम के साथ गांधी जयन्ती व लाल बहादुर शास्त्री जयन्ती समारोह का आयोजन किया गया। समारोह को सम्बोधित करते हुए पीसीसी सदस्य एवं प्रधान प्रतिनिधि नन्द किशोर ने कहाकि
2 अक्टूबर को विश्व स्तर पर अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रुप में भी मनाया जाता है क्योंकि अपने पूरे जीवन भर गाॅधी जी अहिंसा के उपदेशक रहे। 15 जून 2007 को संयुक्त राष्ट्र सामान्य सभा द्वारा 2 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रुप में घोषित किया गया है। भारतीयों द्वारा बड़े गर्व से बापू को शांति और सच्चाई के प्रतीक के रुप में याद किया जाता है । उन्होंने अपने पूरे जीवनभर बड़े-बड़े कार्य किये। उन्होने “सच के साथ प्रयोग” के नाम से अपनी जीवनी में उन्होंने स्वतंत्रता के अपने पूरे इतिहास को बताया है। जब तक आजादी मिल नहीं गयी वह अपने पूरे जीवन भर भारत की स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजी शासन के खिलाफ पूरे धैर्य और हिम्मत के साथ लड़ते रहे। वे सादा जीवन और उच्च विचार वाले एक महान व्यक्ति थे। गाँधी जी धुम्रपान, मद्यपान, अस्पृश्यता और माँसाहारी के घोर विरोधी थे। गाॅधी जयंती पर देश में शराब पूरी तरह प्रतिबंधित रहती है । वे सत्य और अहिंसा के पुजारी थे।अहिंसा परमो धर्मा उनका मूल मंत्र था। गाँधी जी सभी धर्मों और समुदायों को हमेशा एक नजर से सम्मान देते थे । “रघुपति राघव राजा राम” उनका प्रिय भजन था जिसे वे हमेशा गुनगुनाया करते थे। बापू जी ने ब्रिटिश हुकूमत से भारत को आजादी दिलाने के लिए बहुत संघर्ष किया । उनका पूर्ण विश्वास था कि ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अहिंसा के पथ पर चलकर शांतिपूर्ण तरीके से भी आजादी पायी जा सकती है। उन्हे आज भी हमारे बीच शांति और सच्चाई के प्रतीक के रुप में याद किया जाता है।
बापू जी के कार्य इतने महान थे कि उन्हे पूरे विश्व में फैलने से कोई नहीं रोक सका। बापू जी एक ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने भारत की आजादी के संघर्ष में अपना पूरा जीवन दे दिया। भारतियों के असली दर्द को महसूस करने के बाद, उन्होंने गोपाल कृष्ण गोखले के साथ कई सारे आंदोलनों में भाग लेना शुरु कर दिया। असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा और भारत छोड़ो आंदोलन वे अभियान है जो उन्होंने भारत की आजादी के लिये चलाये थे। वह कई बार जेल गये लेकिन कभी अपना धैर्य नहीं खोया और शांतिपूर्वक अपनी लड़ाई को जारी रखा। बापू का पूरा जीवन(वर्तमान और भविष्य की पीढ़ी के लिये) देशभक्ति, समर्पण, अहिंसा, सादगी और दृढ़ता का आदर्श हैं। गाॅधी जी के आदर्श हमें मातृभूमि के लिये हर समय खुली आँखों से सचेत रहने के लिये प्रेरणा देते है। गाॅधी जी कहते थे। “मेरा जीवन मेरा संदेश है, और दुनिया में जो बदलाव तुम देखना चाहते हो वह तुम्हें खुद में लाना पड़ेगा। गाॅधी जी के प्रयास और भारत माता के वीर सपूतों के त्याग और बलिदान से 1947 में अंग्रेज देश छोड़ने को विवश हो गए । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या देश के लिए एक अपूर्णनीय छति थी। 30 जनवरी 1948 की शाम को नई दिल्ली स्थित बिड़ला भवन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की गोली मारकर की गयी थी। वे रोज शाम को प्रार्थना किया करते थे। 30 जनवरी 1948 की शाम को जब वे संध्याकालीन प्रार्थना के लिए जा रहे थे तभी नाथूराम गोडसे नाम के व्यक्ति ने पहले उनके पैर छुए और फिर सामने से उन पर बैरेटा पिस्तौल से तीन गोलियाँ दाग दीं। उस समय गांधी अपने अनुचरों से घिरे हुए थे।
जिसके मुकदमे में नाथूराम गोडसे सहित आठ लोगों को हत्या की साजिश में आरोपी बनाया गया था। इन आठ लोगों में से तीन आरोपियों शंकर किस्तैया, दिगम्बर बड़गे, वीर सावरकर, में से दिगम्बर बड़गे को सरकारी गवाह बनने के कारण बरी कर दिया गया। शंकर किस्तैया को उच्च न्यायालय में अपील करने पर माफ कर दिया गया। वीर सावरकर के खिलाफ़ कोई सबूत नहीं मिलने की वजह से अदालत ने जुर्म से मुक्त कर दिया। बाद में सावरकर के निधन पर भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया। और अन्त में बचे पाँच अभियुक्तों में से तीन – गोपाल गोडसे,मदनलाल पाहवा और विष्णु रामकृष्ण करकरे को आजीवन कारावास हुआ तथा दो- नाथूराम गोडसे व नारायण आप्टेको फाँसी दे दी गयी। इस मौके पर ग्राम रोजगार सेवक अशोक कुमार, गोविन्द नरायण शुक्ल,रामेन्द्र प्रसाद शुक्ला, राकेश प्रसाद मिश्रा,शिवमोहन सिंह,रमेश त्रिवेदी,काशीदीन यादव,सुखराम पवन मौर्य सहित सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण उपस्थित रहे।
वहीं श्री शिवकुमार त्रिवेदी मेमोरियल कैरियर प्लस इण्टर कालेज शिवगढ़ में उक्त दोनो महापुरुषों की जयन्ती बड़े ही धूमधाम से मनायी गयी।इस मौके पर कालेज के छात्र छात्राओं ने गाॅधी जी के जीवन पर आधारित विभिन्न कार्यक्रम प्रस्तुतकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।कालेज के संरक्षक प्रदीप कुमार त्रिवेदी ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत के द्वितीय प्रधानमन्त्री पं0 लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को निर्धन परिवार में हुआ I माता की मृत्य़ु के बाद इनका बचपन बहुत ही कठिनाइयों में बीता, मीलों पैदल चलकर और नदियां तैरकर इन्होंने शिक्षा हासिल की I जिनके जीवन पर श्री रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानन्द का बहुत प्रभाव था I शास्त्री जी बापू गांधी के आंदोलनों में बड़ चढ़ कर भाग लेते थे, 1921 में विद्यार्थी जीवन में ही जेल गये और बाद में काशी विद्यापीठ से शास्त्री कि डिग्री हासिल की I 1930 से 1936 तक इलाहाबाद जिला कांग्रेस के प्रधान बने, आजादी के बाद 1952 के चुनाव में लोकसभा के सदस्य बने और रेल मन्त्री बनाये गये I 1960 में गृह मन्त्री का कार्यभार सम्भाला I 27 मई 1964 को जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद शास्त्री जी को प्रधानमन्त्री बनाया गया I शास्त्री जी ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया I 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया I शास्त्री जी ने अपने सैनिकों का इतना हौंसला बढ़ाया की भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को तहस नहस कर दिया और पाकिस्तान की बुरी तरह से हार हुई I रुसी नेताओं के आग्रह पर शास्त्री जी पाकिस्तान से समझौता करने ताशकन्द गये और वंहा पर उनका 11 जनवरी 1965 को इनका हृदय गति रुकने से निधन हो गया I देश शास्त्री जी के किये गये कार्यों को हमेशा याद रखेगा I
रायबरेली से न्यूज प्लस के लिए अंगद राही की विशेष रिपोर्ट