केएमसी में कम वजन के अपरिपक्व बच्चों को मिल रहा जीवन का वर्दान

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रायबरेली,शिवगढ़ –जन्म के समय कम वजन और अपरिपक्व प्रसव के कारण सबसे अधिक नवजात बच्चों की मौत होती है,भारत में हर दूसरे नवजात बच्चे की मौत का कारण जन्म के समय कम वजन या अपरिपक्व प्रसव है। जो माताओं के बदहाल स्वास्थ्य और अपर्याप्त स्वास्थ्य व्यवस्था को दर्शाता है। 28 दिनों भीतर हुई मृत्यु को नवजात मृत्यु दर के रूप में परिभाषित किया जाता है। विडम्बना है कि बाल मृत्यु की संख्या के संबंध में भारत का स्थान दुनिया में काफी ऊपर है। यदि जन्म के समय शिशु का वजन 2.5 किलो (5.5 पाउंड) से कम होता है तो उसे एलबीडब्लू कहा जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ के अनुसार अपरिपक्व बच्चा वह होता है जो गर्भावस्था के 37 सप्ताह के पूरा होने से पहले जीवित पैदा होता है। उक्त जानकारी कम्युनिटी एम्पावरमेंट लैब,सक्षम की अग्रिमाँ निर्मला ने देते हुए बताया ऐसे अपरिपक्व शिशुओं के लिए कंगारू देखभाल वर्दान साबित हो रही है।

केएमसी में अपरिपक्व बच्चे को सीने से लगाये मानसिक रूप से विक्षिप्त रामरानी

जिस प्रकार कंगारू अपने बच्चों को अपनी थैली में रखकर देखभाल करता है, उसी प्रकार केएमसी में माॅ अपने अपरिपक्व बच्चे को सीने से लगाकर रखती है। सीएचसी शिवगढ़ में स्थित केएमसी कक्ष में माँ और शिशु की देखभाल कर रही अग्रिमा निर्मला ने बताया कि केएमसी में अपरिपक्व बच्चों के साथ ही माॅ को बच्चों के उचित देखभाल का तौर तरीका भी सिखाया जाता है।

केएमसी यूनिट में विक्षिप्त महिला ने सीखा, बच्चे की परवरिश का तरीका

उन्होंने बताया कि बीते 6 दिसम्बर को आशाबहू मनोकान्ति मानसिक रुप से विक्षिप्त रामरानी को प्रसव के लिए सीएचसी लेकर आयी थी,जिसे अपरिपक्व बच्चा हुआ था स्थित यह थी कि वह अपने बच्चे को दूध भी पिलाना नही जानती थी।  उसी दौरान दूसरी प्रसूता सावित्री ने भी अपरिपक्व बच्चे को जन्म दिया था, कम वजन के कारण सिस्टर पुष्पा व सीएचसी अधीक्षक डा0 एलपी सोनकर ने दोनो को समझाया जिस पर दोनो केएमसी देखभाल के लिए तैयार हो गयी और 14 दिनों तक केएमसी यूनिट में एक साथ रही इस दौरान दोनो में अच्छी दोस्ती हो गयी थी ,सावित्र जब भी अपने बच्चे को दूध पिलती थी वह मानसिक रुप से विक्षिप्त रामरानी को भी बच्चे को दूध पिलाने को कहती थी। इस दौरान दिन में 4-5 बार सीएचसी अधीक्षक स्वयं आकर दोनो अपरिपक्व बच्चों व प्रसूताओं की जाॅच करते थे और उनके खाने पानी का पूरा खयाल रखते थे। दोनों मातायें केएमसी में बेहद खुश थी केएमसी देखभाल से दोनों अपरिपक्व बच्चों का लगातार ग्रोथ बढ़ने से उन्हें नया जीवनदान मिला। इस दौरान मानसिक रुप से विक्षिप्त रामरानी ने नहाना,धोना,उठना,बोलना दूसरों का आदर करना सीख लिया था, 14 दिनों के दौरान दोनो दोनों माताओं को नहलाने धुलाने के साथ सिस्टर पुष्पा प्रतिदिन अपने हाथों से दोनों को सजाती सवारती थी। जब वह दोनो डिस्चार्ज होकर अपने जाने लगी तो उसकी आंखों में आंसू छलक आये।

सीएचसी अधीक्षक का कहना है –

सीएचसी अधीक्षक डा0 एलपी सोनकर ने बताया कि केएमसी में अग्रिमा द्वारा शिशुओं व माताओं की सिर्फ अच्छे से देखभाल ही नही की जाती,बल्कि माताओं को शिशुओं की देखभाल करने के तौर तरीकों के साथ ही  उन्हे संस्कार सिखाने का सराहनीय कार्य किया भी किया जाता हैं।रायबरेली से न्यूज प्लस संवाददाता अंगद राही की रिपोर्ट।

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