फाइलों में उलझ कर रह गई एनटीपीसी मृतको के परिजनो की सिसकियां

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सर्वेश त्रिपाठी के साथ महेंद्र सिंह की रिपोर्ट

रायबरेली एक नवंबर 2017 का वो काला दिन आज तक कोई भूल नही पाया जब एनटीपीसी ऊंचाहार में दोपहर बाद अचानक ब्वायलर में विस्फोट होने से प्लांट की चहल पहल में अचानक मातम पसर गया। हर कोई चीख रहा था। अफ़रातफ़री के माहौल में कोई अपनो को ढूंढ रहा था तो कोई घायलों को देख खुद बेहोश हो रहा था। ऊँचाहार ने इतना दर्दनाक और भयावह नजारा पहले कभी नही देखा था। बदहवास भागते लोग जिनको अस्पताल पहुंचाने वाले लोग स्थानीय थे। जातपांत भेदभाव भूल कर मानव सेवा में लगे थे। सबका एक मात्र उद्देश्य था कि ज्यादा से ज्यादा लोगो को राहत पंहुचाई जाए। घटना इतनी बड़ी थी कि राहुल गांधी सहित उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री, मंत्री समेत कई दर्जन अधिकारी मौके पर पंहुचे। सबने हरसंभव मदद का एलान किया । तमाम कोशिशों के बावजूद एनटीपीसी ने 45 लोगो को खो दिया और कई दर्जन गंभीर घायल थे। इलाज की व्यवस्था के लिए सूबे के मुखिया ने अस्पतालों को एडवाइजरी जारी की लेकिन एनटीपीसी के तीन एजीएम भी इलाज के दौरान दम तोड़ गए।

घटना के बाद लगा था नेताओ का हुजूम

इस घटना के होने की खबर जैसे ही मीडिया के माध्यम से फैली जिले में मंत्री नेता से लेकर बड़े अधिकारियो का जिले आना शुरू हो गया और घड़ियाली आंसू बहा कर सबको मदद देने की बात कही जाने कही जाने लगी । चोट पर मरहम लगाने बीजेपी से उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा, केन्द्रीय व कई राज्यमंत्री मौके पर गए। कांग्रेस से राहुल गांधी समेत कई दिग्गज भी घायलों और उनके परिजनों से मिले। सरकार द्वारा तत्काल मृतक आश्रितों को 2-2 लाख रुपये दिए गए। लेकिन घटना के इतने दिन बीत जाने के बाद अब परिजनों की सुध लेने वाला कोई नही है।

गठित की गईं जांच कमेटियां

इस घटना के तुरंत बाद जिलाधिकारी और एनटीपीसी के द्वारा एक बड़ी जांच कमेटी गठित कर दी गई जो इस घटना की जांच करने के लिए बनाई गई थी । घटना के बाद गठित की गई जांच कमेटी को 30 दिनों के भीतर ही हादसे के मूल कारणों को पता करके सामने लाना था और उच्चाधिकारियो को सौंपना था, जिससे की इस घटना के दोषियों को सामने लाया जा सके और उनपर कार्यवाई की जा सके । लेकिन आज 30 दिन से भी ज्यादा बीत जाने के बाद जांच हुई की नही या जांच में क्या सामने आया इसके विषय में कोई भी अधिकारी बोलने को तैयार नहीं है । लेकिन आज एक माह से अधिक बीत जाने के बाद भी कोई भी सच सामने नहीं आया और न ही कोई अधिकारी मंत्री इस बाबत कुछ बोलने को तैयार है ।

एनटीपीसी ने भी की थी घोषणा

एनटीपीसी ने हर मृतक को पहले पांच लाख फिर दस लाख देने का वादा किया था किंतु स्थानीय दबाव के बाद इस राशि को बढ़ाकर 20-20 लाख रुपये कर दिया। लेकिन तब तक प्रशासन निकाय चुनाव में व्यस्त हो गया और सारे दावे उसमे सिमट कर रहा गए। 20 लाख की मुआवजा राशि भी श्रम विभाग की खाना पूर्ति में उलझ कर रही गई है बेचारे मजदूरों के परिजन ठगे से रह गए हैं।

परिवारों में कलह का कारण बन रही मुवावजा राशि

वहीँ इस हादसे में मरने वाले एक मजदूर के परिवार में
एक परिवार ऐसा भी है जिसमे मुवावजा राशि को लेकर आपस में मन मुटाव भी पैदा हो रहा है । चूंकि मुआवजा पत्नी को मिलता है और परिवार के अनुसार मुवावजा राशि पुरे परिवार को बराबर मिलनी चाहिए न की परिवार के किसी एक सदस्य को ।

हादसे के दिन से आज तक मीडिया के प्रवेश पर पाबंदी क्यों

एक नवंबर को हादसे के बाद से आज तक एनटीपीसी परिसर में मीडिया का प्रवेश पूरी तरह से वर्जित कर दिया गया । जिससे एनटीपीसी प्रशासन पर कई तरह के सवाल उठना लाजिमी है । यही मिडिया शब्द का अगर गलती से भी प्रयोग कर लिया जाए तो गेट पर तैनात सीआईएसएफ के सुरक्षाकर्मी ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे आप अपने देश की सीमा लाँघ कर किसी दूसरी सरहद में प्रवेश कर रहे हों ।

मुख्यमंत्री का आदेश भी नही दिला सका न्याय

इस घटना के बाद मुख्यमंत्री ने दोषियों पर एफआईआर करने के आदेश दिए थे लेकिन एक माह से अधिक बीत जाने के बाद भी जाँच रिपोर्ट को सार्वजानिक न करना और किसी भी दोषी पर एफआईआर न होना एनटीपीसी के मनमाने रवैये को उजागर करने के लिए काफी है ।

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हादसे में जान गंवाने वाले कुछ परिवारों की कहानी आपको आज बताएंगे जिनमे साफ है कि मौत पर सियासत करने जो खद्दरधारी आये थे वो सिर्फ एक छलावा था। आज उनकर सामने रोजी रोटी का संकट है। दुःख की इस घड़ी में अब उनके साथ खड़ा होने वाला कोई नही है। हमारी टीम से बात करने पर उनका दर्द आंखों से छलक पड़ा।ये वो परिवार हैं जिनमे किसी की मांग उजडी तो किसी बहन का भाई छिना। किसी मां की गोद सूनी हुई तो किसी के बुढ़ापे की लाठी टूट गई। दूसरो के घरो में उजाला फैलाने वाली एनटीपीसी ने कई घरों में अंधेरा कायम कर दिया। जो सिर्फ जीवन भर उन्हें कोसेंगे जो उन्हें मरहम लगाने आये थे और उनके घावों पर रोटियां सेंक के निकल गए।

मृतकों के परिजन हो रहे हताश

पीड़ित परिवार एक  इस भीषण हादसे में मरने वालो में एक परिवार अवधेश जायसवाल का भी था जो ऊंचाहार थाना क्षेत्र के बिकई गांव का रहने वाला था । अवधेश जायसवाल अपने परिवार का अकेला सहारा था । उसके घरवालों की माने तो फरवरी माह में ही शादी अंजली नाम की लड़की से हुई थी । अब उसके घर में कोई भी कमाने वाला नहीं है और न तो अब तक एनटीपीसी हादसे के जिम्मेदारों पर कोई कार्यवाई हुई न उनको मुवावजे की पूरी राशि मिली और न ही कोई अधिकारी उनके घर पर हाल खबर लेने आया । ऐसे ही कई परिवार हैं जो आज भी अधिकारियो के आने की राह तलाशते हैं ।

पीड़ित परिवार दो गाँव पूरे कुर्मिन मजरे पुरवारा निवासी लवकेश जिनकी मौत एनटीपीसी हादसे में झुलसने के बाद इलाज दौरान अस्पताल में हुई। मां रामदासी की उम्र काफी हो चली है और पिता तुलसीदास तो बेटे से बहुत उम्मीद लगा रखे थे इन पर तो मानो पहाड टूट पड़ा हो। बात करते ही आज भी फूट फूटकर ये लोग रोने लगते हैं। मृतक की पत्नी मालती जिनकी अभी हाथ से ठीक से मेहंदी तक नही छूटी थी। नए घर को ठीक से समझ नही पाई थी । शादी इसी साल 18 जून को हुई थी । मालती रोते हुए बताती की मेरी गोद भरने से पहले मेरे सुहाग को एनटीपीसी ने छीन लिया। यही नही म्रतक पर बहन की शादी का बोझ भी था। इस बिखरे परिवार की सुनने वाला अब कोई नही है।

पीड़ित परिवार तीन  ऊंचाहार कोतवाली के तुराबी का पुरवा मजरे मोखरा के कृष्णमुरारी 50 साल के थे जो हादसे की भेंट चढ़ गए। कृष्ण मुरारी अपने पीछे पत्नी अर्चना, पुत्री नीलकामनी, स्वेतकामनी, विन्धवासिनी, हंसवाहिनी व पुत्र हरिओम, शिवओम को छोड़ गए हैं। इनकी बेटियां अभी अविवाहित हैं। इनकी शिक्षा शादी आदि की जिम्मेदारी परिवार पर किसी बड़ी आपदा से कम नही। घर मुखिया के जाने के बाद बेसहारा परिवार का सहारा कोई नही है। मुवावजे की राशि कागजी खाना पूर्ति में अटक गई है।

पीड़ित परिवार चार ऊंचाहार कोतवाली के गाँव पूरे गुरूदयाल निवासी भीम पुत्र सुरेश कुमार की इलाज के दौरान मौत हो गई। भीम अपने माता-पिता की इकलौती संतान था। भीम की मौत से आहत भीम की दादी जगपती की भी मौत हो गई। एक ही घर मे दो अर्थियों ने परिवार को तोड़ दिया। घर मे कमाने वाला वह अकेला शख्स था। भीम अपने पीछे गमगीन मां विपता व पिता सुरेश को अकेला ही अकेला नही छोड़ा बल्कि बहन सीमा, बीना, रेनू, रूबी, नीलम, संगम, शारदा, आरती की जिम्मेदारी भी पीछे छोड़ गया है।

पीड़ित परिवार पांच ऊंचाहार कोतवाली के गाँव पिपरहा अजीत कुमार जैसे ही हादसे का शिकार हुए उनके पिता लालबहादुर और माँ कलावती बेहोश हो गए। किसी तरह लोगो ने उन्हें समझा बुझा कर शांत किया लेकिन सबसे ज्यादा गुस्सा इन्हें सरकार और उनके कारिंदों से है।

पीड़ित परिवार छः ऊंचाहार कोतवाली के गाँव लालचन्द्रपुर इकछनिया के बीरेन्द्र कुमार की मौत भी इलाज के दौरान हो गई है। मौत के बाद एक एक दाने को मोहताज उनकी पत्नी शिवकुमारी, पुत्री खुशबू, पुत्र संदीप, रंजीत का साथ परिवार और रिश्तेदारों ने भी जिम्मेदारी से बचने के लिए छोड़ दिया। हमसे बात करने के दौरान इन्होंने श्रम विभाग पर किये गये वादे को पूरा न करने का आरोप लगाया है।

पीड़ित परिवार सात कोतवाली सलोन के गाँव गौसपुर मजरे उमरन के रहने वाले जगलाल ने इलाज दौरान दम तोड़ दिया। जगलाल से बुढ़ापे की उम्मीद लगाए मा औसना तो अब किसी से बात तक नही करती। उनके बुढ़ापे के सहारे को एनटीपीसी हादसा खा गया। जगलाल की पत्नी के सामने पुत्री जान्हवी,शन्नी के पेट की भूख मिटाने का आखिरी विकल्प भी नही बचा। रही सही कसर श्रम विभाग कागजी खाना पूर्ति में उलझा कर पूरी कर रहा है।
हालांकि ये तो स्थानीय मृतको के परिजनों की आप बीती है यहाँ काम करने वाले अधिकांश मजदूर बाहरी थे जिनके बारे में एनटीपीसी द्वारा कोई सूचना नही दी जा रही है।

हादसे के बाद कालोनियों में जड़े हैं ताले

ऊंचाहार एनटीपीसी के पांच सौ मेगावाट की नई यूनिट के कर्मचरियों के रूकने के लिए प्लांट से सटे गांव निरंजनपुर के पास कलोनियां बनी है जहां पर एक कमरे में तीन से चार श्रमिक रहते थे। ये मजदूर बिहार, छत्तीसगढ़ के थे जिनके कमरों में हादसे के बाद से ताले लगे हैं अखिर इतनी बड़ी संख्या में मजदूर कहाँ गए ये भी एक रहस्य है।

 

महेन्द्र प्रताप सिंह

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